यह कहानी सारण के ईसुआपुर के दारोगा संजय कुमार तिवारी की है जिनहें जरायमपेशों ने सोमवार को गोलियों से छलनी कर दिया. तीन दिन पहले संजय ने एएसपी सुशील कुमार को फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा था.
नौकरशाही डेस्क
संजय ने अपनी हत्या के दो दिन पहले सुशील कुमार को फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा था. सुशील सारण में कुछ महीने पहले तक एएसपी थे और फिलाहाल निगरानी महकमें में उसी पद पर हैं. सुशील ने रिक्वेस्ट कुबूल कर ली. पर इस बीच दोनों की कोई बात नहीं हुई. सुशील को इन दो दिनों में बात करने का मौका नहीं मिला. लेकिन उनकी मौत के बाद सुशील सकते में हैं. सुशील, संजय की बाहदुरी और जोश के कायल हैं. उन्होंने सारण के एएसपी रहते संजय की सलाहियत को बखूबी पहचाना था.
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दर असल संजय अपने फर्ज निभाते हुए शहीद हुए हैं. उन्हें मोबाइल पर सूचना मिली कि कुछ लोग कैश वैन लूटने वाले हैं. वह अकेल ही थे तब. रास्ते में उन्होंने एक बाइक पर सवार तीन लोगों को रोका. उनसे पूछताछ कर रही रहे थे कि उनमें से एक ने ताबड़ातोड़ उनके सीने में गोलियां दाग दीं. इस घटना के बाद जरायमपेशों को महसूस हो गया कि अब वे लूट की वारदात अंजाम नहीं दे सकते. संजय ने फर्ज निभाने में जान दे दी. लूट की वारदात नहीं होसकी
संजय की हत्या से वैसे तो पूरा पुलिस महकमा सकते में है लेकिन सुशील के लिए यह निजी क्षति जैसी है. एक जाबांज और जोशीला अफसर खोने के अलावा एक अच्छा इंसान के खोने जैसा. परिवार के एक सदस्य से बेवक्त महरूम हो जाने जैसा.
सुशील बताते हैं कि “संजय की मौत की खबर, उन्हें एक आला अफसर से मिली. मैं सन्न रह गया. यकीन नहीं हुआ कि संजय चले गये”.
डीजीपी पीके ठाकुर भी काफी मर्माहत थे. उन्हें याद आया कि सारण से बाहर अगर संजय को कोई अफसर अच्छी तरह से जानता है तो वह सुशील हैं. पीके ठाकुर ने फौरन सुशील को अपने दफ्तर बुलाया. जानकारी ली. जो जानकारी सुशील दे सकते थे वह दी. फिर उन्होंने खुद संजय संग हुई घटना के बारे में जानकारी लेनी शुरू कर दी. उन्होंने बीसीयों कॉल्स किये. दूसरी तरफ सारण के एसपी और इस क्षेत्र के डीआईजी समेत तमाम अफसर तो लगे ही थे.
संजय 2009 बैच के अफसर थे संजय. 2013 में ही उनकी शादी हुई थी. एक बेटा है. छह महीने का. पत्नी को महज डेढ़ साल में छोड़ के दूसरी दुनिया में चले गये संजय. पत्नी की हालत की कल्पना की जा सकती है.
एक पुलिस अफसर की हत्या प्रशासन के लिए गंभीर चुनौती है. मनोबल को तोड़ने जैसी चुनौती. फिर भी यह भरोसा करना चाहिए कि पुलिस उन जरायमपेशों को खोज निकालेगी. उन्हें सजा मिलेगी. लेकिन फिक्र की बात यह भी है कि पिछले एक दशक में सारण में 4-5 ता थानेदारों की हत्या हो चुकी है. संजय उस कड़ी के आखिरी अफसर थे.