हथियारों की खरीद-फरोख्त में मिडिलमैन (बिचौलियों, दलाल) की मौजूदगी को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी नई सरकारी नीति भारत सरकार जल्द ही लागू करेगी। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इसका एलान किया है। दैनिक भास्करडॉटकॉम ने एक न्यूज चैनल के हवाले से खबर दी है कि पर्रिकर ने कहा कि कंपनियों को बिचौलियों के बारे में पहले से बताना होगा और उन्हें मिलने वाला कमीशन डील की रकम में नहीं जुड़ा होगा।
नई नीति के तहत, इन एजेंट्स को सौदों से जुड़ी बैठकों में मौजूद रहने का मौका मिलेगा, ताकि वे संबंधित कंपनी का प्रतिनिधित्व कर सकें। पर्रिकर के मुताबिक, सभी आधिकारिक प्रतिनिधियों के लिए यह मुमकिन नहीं है कि वे हर मीटिंग में शरीक हों। रक्षा मंत्री ने यह भी बताया कि सरकार प्रतिबंधित हथियार कंपनियों से डील के लिए सीमित मंजूरी दे सकती है। सरकार ने यह कदम रक्षा सौदों में तेजी लाने के लिए उठाया है। इस वक्त देश के डिफेंस सेक्टर को अहम तकनीक और सिस्टमों की जरूरत है, लेकिन बहुत सारी विदेशी कंपनियां यह आरोप लगाती रही हैं कि भारत में रक्षा सौदों के अनुकूल माहौल नहीं है। इसके अलावा, भाषा भी आड़े आती रही है।
हाल ही में मनोहर पर्रिकर ने नेवी के लिए बेहद जरूरी समझे जाने वाले माइन स्वीपर शिप्स की खरीद कैंसल कर दी थी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि इन्हें बनाने वाली दक्षिण कोरियाई कंपनी ने सरकार को बताया था कि उसने इंग्लिश भाषा में मदद के लिए दिल्ली की एक कंपनी की सेवाएं ली थीं। उल्लेखनीय है कि आर्म्स डीलिंग में बिचौलियों की मौजूदगी विवाद के घेरे में रही है। 1980 के दशक में कांग्रेस के शासन में हुए अरबों रुपए के कथित बोफोर्स तोप सौदों से जुड़े घोटाले के बाद मिडिल मैन (बिचौलियों) या डिफेंस एजेंट्स पर पूरी तरह से पाबंदी लग चुकी है।