ओवैसी की पार्टी ने बिहार चुनाव लड़ने का ऐलान करके कई पार्टियों की धड़कनें बढ़ा दी हैं. हमारे सम्पादक इर्शादुल हक ने एएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तुरुल ईमान से खास बातचीत.
यूं तो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी सौ वर्षों से भी अधिक समय से वजूद में है लेकिन एक वर्ष पहले तक इस पार्टी को आंध्रप्रदेश-तेलंगाना से बाहर इसका नाम भी लोग मुश्किल से ही जानते थे. लेकिन 2014 में पहली बार इस पार्टी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दो सीटें जीतीं. मीम की यह सफलता राज ठाकरे की पार्टी से भी बड़ी सफलता मानी गयी. इस पार्टी के की कमान सांसद असदुद्दीन ओवैसी के हाथों में है जबकि उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी विधायक हैं और अपने विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं. ओवैसी की पार्टी ने बिहार में चुनाव लड़ने का फैसला ले कर हलचल मचा दिया है. ओवैसी ने कोचाधामन से राजद के विधायक रह चुके अख्तरुल ईमान को बिहार प्रदेश कमेटी का अध्यक्ष घोषित किया है. चुनावी फैसले पर उनसे हुई बात चीत के खास अंश यहां पेश हैं-
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलेमीन(एआईएमआईएम या मीम) के प्रमुख असदुद्दीन ने बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ने का फैसला किया और साथ ही आपको पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. आगे क्या योजना है?
हम कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और सुपौल में अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे. हमारी प्राथमिकता है कि हम 25-27 पर चुनाव लड़ें. तैयारियां शुरू कर दी गयी हैं.
आप राजद में विधायक रहे. जद यू में आये. फिर अचानक मीम जैसी पार्टी को ज्वाइन करने का क्या मकसद है?
पिछले 68 वर्षों में तमाम पार्टियों ने सीमांचल के साथ घोर नाइंसाफी की. आप पूरे बिहार को देखें तो लगता है कि तरक्की के सारे काम सीमांचल के बाहर ही दिखेंगे. यहां गुरबत है, अशिक्षा है, बेरोजगारी है. अब यहां की जनता किसी हाल में उन पार्टियों के साथ नहीं जाना चाहती जिन्होंने उनको दशकों से नजरअंदाज किया.
पिछले 25 वर्षों से राजद-जद यू की सरकार रही, उसके पहले कांग्रेस की रही. तो क्या आपकी लड़ाई इन पार्टियों से है?
हमारी लड़ाई उन तमाम पार्टियों से है जिन्होंने सीमांचल के साथ नाइंसाफी की. आज सीमांचल बिहार का सबसे पिछड़ा इलाका है. साथ ही हमारी लड़ाई फिरकापरस्त ताकतों से भी है. मीम का मकसद यह है कि एक तरफ हम फिरकापरस्त ताकतों को हरायें वहीं दूसरी तरफ सीमांचल के साथ नाइंसाफी करने वालों को भी सबक सिखायें.
आपकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी या गठबंधन भी करेगी?
अभी तक हम लोगों ने इस पर कोई आखिरी फैसला नहीं लिया है. जरूरत हुई तो गठबंधन पर सोच सकते हैं लेकिन इस पर आखिरी फैसला केंद्रीय कमेटी को लेना है.
मीम के मैदान में आने से राजद-जदय-कांग्रेस गठबंधन को नुकसान होगा?
उन तमाम पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ेगा जो सीमांचल के साथ नाइंसाफी करती रही हैं और उन्हें भी नुकसान होगा जो फिरकापरस्त हैं.
अगर चुनाव में आपकी पार्टी को कामयाबी मिलती है तो क्या आप भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनायेंगे?
फिरकापरस्त पार्टी से हमारी सैद्धांतिक लड़ाई है. उसके साथ सरकार बनाने का तो सवाल ही नहीं.
तो क्या चुनाव बाद राजद-जदद यू गठबंधन के साथ जायेंगे?
अभी इन बातों पर कुछ नहीं कहा जा सकता. हमारी प्राथमिकता चुनाव लड़ना और जीतना है.