विद्युत की पत्नी माधवी आगे सबसे बायें: जान है तो जहान है

7 सितंबर की रात सभी अपने अपने कमरे में सो रहे थे।रात 12 बजे महिलाओं के चीखने की आवाजें आने लगीं, हमें लगा कि हम टाइटेनिक जहाज पर सवार हैं और यह हमारी आखिरी रात है.

विद्युत प्रकाश मौर्य अपनी पत्नी और बेटे के संग श्रीनगर में सैर को पहुंचे पर उन्हें कहां मालूम कि वह मौत के मुंह मे समा जाने वाले हैं. वहां से लौटकर उनका अनुभव उन्हीं के शब्दों में पढिये-
इससे पहले की आपबीती इस लिंक में पढ़ें- क्यामत इसे ही कहते हैं

हिन्दुस्तान के 22 राज्यों के 250 शिल्पी श्रीनगर पहुंचे थे अपने हाथों के हुनर से बनाई सामग्रियां लेकर। 10 दिनों तक चलने वाले सरस मेले में होने वाली बिक्री से लाखों कमाई की उम्मीद थी। पर कश्मीर के कई हिस्सों में लगातार हो रही बारिश के कारण 4 सितंबर से शुरू होने वाले मेले की तारीख बढाकर 10 सितंबर कर दी गई। कौनाखान रोड के होटल रिट्ज में ठहरे 250 कलाकारों को उम्मीद थी कि एक हफ्ते बाद ही सही मेला शुरू होगा तो कुछ बिक्री होगी और कमाई के साथ अपने घर लौटेंगे।

7 सितंबर की रात सभी लोग अपने अपने कमरे में सो रहे थे। अचानक रात के 12 बजे कई महिलाओं के चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगीं। दरअसल झेलम दरिया का पानी दिन भर पूरे शहर को डुबोने के बाद डल झील के पास पहुंच चुका था। चैनल गेट से ओवर फ्लो होने के बाद पानी सड़क के ऊपर से गुजरता हुआ डल झील में जा रहा था। डल झील के जद में स्थित होटल रिट्ज चारों तरफ से डूबने लगा था। होटल में रह रहे कश्मीर, पंजाब, हरियणा, हिमाचल, दिल्ली, यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, ओडिशा, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा समेत देश के दूसरे राज्यों के तमाम लोग होटल की छत पर पहुंच कर पानी का कहर देखने लगे।

सारी रात जागते हुए कटी। पानी अगले दिन शाम को पांच बजे तक सड़क से ऊपर होकर होटल में भरता रहा। वहीं अगली रात को पानी सामने से नहीं डल झील की तरफ से होटल में आने लगा। सबके चेहरे पर खौफ था। चार मंजिलों वाले होटल का आधार तल खाली करा लिया गया था। पर सारा इलाका जलमग्न हो चुका था। डल झील में अवैध कब्जा कर बनाए गए कच्ची नींव वाले होटलों के कभी भी जमींदोज होने का खतरा था। देश भर से जुटे 250 लोगों की जान सांसत में थी।

सबके मन में डर समाया हुआ था, मानो हम किसी टायटेनिक जहाज पर सवार हों और कहीं ये हमारी आखिरी रात न साबित हो। सुनने में आ रहा था सारा शहर डूब चुका है। आखिर यहां से निकल कर जाएं तो कहां। सरस मेले के आयोजक अधिकारियों का फोन नहीं लग रहा था। बटमालू नुमाइश ग्राउंड में शिल्पियों का सारा समाना डूब चुका था। बनारस की साड़ी, चंबा के चुक, हिमाचल के अचार, मणिपुरी शाल और तमाम राज्यों का नायाब कलाकृतियां बाढ़ की भेंट चढ़ चुकी थीं। कमाई तो दूर अब तो सिर्फ जान बचाने की पड़ी थी। होटल के मालिक एजाज अहमद सभी लोगों के खाने का प्रबंध तो कर रहे थे। पर अनाज का स्टाक खत्म होने को था। उन्हें भी होटल की बिल्डिंग गिरने का अंदेशा था।

राजौरी के रहने वाले शिल्पी आफताब बानी किसी सुपरमैन की तरह छत से कूद कर गहरे पानी में घुसे और बाहर निकल कर माहौल पता करने गए। जानकारी मिली कि आठ किलोमीटर आगे राजभवन से फंसे हुए लोगों की एयर लिफ्टिंग हो रही है। इसके बाद बिना देर किए सारे लोग होटल खाली कर निकल पड़े, इस उम्मीद से की किसी तरह बाहर निकलने का मौका मिलेगा।

By Editor


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