इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के काफिला से उनकी सुरक्षा में लगे जवान अचानक कहीं छूट गये. इसके बाद जज साहब इतने तिलमिला गये कि उन्होंने डीजीपी को तलब कर लिया. फिर आगे क्या हुआ?
यात्रा के दौरान रास्ता भटक जाना या किसी तकनीकी गड़बड़ी से स्कॉर्ट में लगा दस्ता कभी-कभी पीछे छूट जाता है, यह आम बात है पर इस घटना को जितनी गंभीरता से जज साहब ने लिया इसके बारे में यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर की फर्स्ट हैंड जानकारी आप भी पढ़िये.
अभी नाम नहीं लूँगा पर आगे कभी बताऊंगा. इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज साहब इलाहाबाद से लखनऊ आ रहे थे. शायद कुछ कन्फ्यूजन हुआ (चाहे एस्कॉर्ट वालों की गलती या कुछ अनजानी त्रुटि) पर कारण जो रहा हो, रास्ते में उनके साथ लगा एस्कॉर्ट कुछ अलग हो गया. लेकिन जज साहब सकुशल लखनऊ पहुँच गए.
अगले ही दिन जज साहब ने यूपी के डीजीपी को अपने चैंबर में तलब किया. उन्हें इस बारे में जरूर कड़े निर्देश दिए गए. लेकिन इतना शायद काफी नहीं था. अगले दिन इस “लापरवाही” की जांच के लिए कहा गया.
साफ़ कर दूँ कि यह सब जानकारी मुझे आधिकारिक हैसियत से नहीं, अपने निजी स्तर पर मिली है.
पर यहाँ सवाल यह मन में आता है कि यदि एस्कॉर्ट गलती से छूट ही गया और जज साहब सकुशल लखनऊ चले आये तो क्या अपने आप में पर्याप्त नहीं था? यदि जज की हैसियत के लोग अपनी व्यक्तिगत सुविधाओं को लेकर ही इतने सजग रहेंगे तो देश की दशा और दिशा में वांछित परिवर्तन कहाँ से हो पायेगा ?
जो संविधान में समाजवाद और बराबरी की अवधारणा है, उसके प्रति उनके मन में लगाव कहाँ से उत्पन्न होगा? जो लोग बिना सुरक्षा और एस्कोर्ट के जीवन जी रहे हैं, उनका दर्द कहाँ से समझ पायेंगे ?