वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सत्येंद्र सिन्हा मोदी की उस रहस्मय दुनिया से रू-ब-रू करा रहे हैं जहां आरएसएस के पितृपुरुषों हेडगेवार, गोलवरकर और सावरकर को छोड़ गांधी के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश की जा रही है.
गांधी जयंती के दिन जी न्यूज ने मोदी का गांदी कनेक्शन नाम से एक कार्यक्रम दिखाया. इसमें गांदी और मोदी के बीच समानता दिखायी गयी- दोनों गुजरात के हैं और दोनों शाकाहारी हैं और दोनों ही आम आदमी से जुड़े हैं.
इस तर्क की हिमायत में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी का वह बयान भी दिखाया गया कि गांधी ने भारत को आजादी दिलायी जबकि मोदी भारत को विकास के रास्ते पर ले जा रही हैं. दोनों का काम एक ही तरह का है. अमेरिका यात्रा के पूर्व जी मीडिया ने मोदी की तुलना विवेकानंद से की ती. तुलना और समानता का आधार विवेकानद का मूल नाम नरेंद्र होना था. कार्यक्रम का शीर्षक था ‘112 वर्ष बाद अमेरिका में फिर नरेंद्र’.
नारों का सहारा
प्रधान मंत्री बनने के बाद मोदी ग्लोबल लीडर बनने की हड़बड़ी में हैं. वे एक साथ विश्व नेता और समाज सुधकर बनना चाहते हैं. वे प्रवचन देते हैं, आप्त वचन बोलते हैं. उन्हें खुशफहमी है कि उनकी सुक्तियां, उनके नारे ‘सबका साथ सबका विकास’ सदियों तक भारत और विश्व में भी सदा के लिए अंकित हो जायेंगे जैसे इस देश में तिलक की उक्ति ‘स्वराज हमारा जन्मसिधअधिकार’ है. गांधी का नारा- ‘करो या मरो’. नेता जी सुभाष का ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’.जेपी का नारा ‘सम्पूर्ण क्रांति’ और लाल बहादुर शास्त्री का नारा ‘जय जवान जय किसान’ देश वासियों के मन पर अंकित है.
दूसरे के नारे में तनिक बदलाव करना, आइकॉन्स अपने हित में इस्तेमाल करना पहली सरकार के कार्यक्रम ‘निर्मल भारत’ अभियान को ‘स्वच्छ भारत’ अभियान के नये नाम से नयी पैकेजिंग कर बेचना, कुटिल व्यापारिक चतुराई हो सकती है, देश भक्ति या समाज सेवा नहीं.
मोदीजी को शायद पता होगा कि शास्त्री जी का नारा ‘जय जवान जय किसान’ में अटल जी ने ‘जय विज्ञान’ नारा जोड़ा था . उनके नारे का हस्र क्या हुआ यह देश वासी अच्छी तरह जानते हैं. ऐड गुरुओं के द्वार आकर्षक और लुभावने नारों के गढ़ने और कार्पोरेट और मीडिया तिकड़म से चुनाव तो जीता जा सकता है लेकिन देश का नेता नहीं बना जा सकता है.
दूसरे के नारे में तनिक बदलाव करना, आइकॉन्स अपने हित में इस्तेमाल करना पहली सरकार के कार्यक्रम ‘निर्मल भारत’ अभियान को ‘स्वच्छ भारत’ अभियान के नये नाम से नयी पैकेजिंग कर बेचना, कुटिल व्यापारिक चतुराई हो सकती है, देश भक्ति या समाज सेवा नहीं.
आरएसएस के पितृपुरुष बनाम गांधी
मोदी और संघ परिवार ने अपने पितृपुरुषों- हेडगेवार, गोलवलकर, सावरकर और गोडसे को परदे के पीछे ढ़केल दिया है. अब वे खादी और गांधी की स्वच्छात की रट लगा रहे हैं. पिछले कई वर्षों से भाजपा और संघ परिवार महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष बोस, लाल बहादुर शास्त्री, अम्बेडर, जेपी-लोहिया और कर्पूठाकुर की जयंती मना रही है. भाजपा के नेता अकसर यह तर्क देते हैं कि ये नेता किसी दल विशेष की जागीर नहीं है.
इस मासूम तर्क पर भला कौन भरोसा करेगा. ये सभी नेता किसी दल विशेष के ही रहे हैं. भले ही उनका व्यक्तित्व दलीय सीमा से ऊपर की हो.
मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि उनके पितृपुरुष हेडगेवार, गोलवलकर, सावरकर और गोडसे भारतीय जनमानस में कभी स्वीकार्य नहीं हो सकते. मोदी को गांधी से जोड़ने के दो फायदे मोदी और संघ परिवार को दिखते हैं. गांधीजी की हत्या और गुजरात दंगो से पापमुक्ति मिल जायेगी और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संघ और भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ेगी.
भारत के लोग कभी नहीं भूलेंगे कि हिंदू महासभा और आरएसएस से जुड़े गोडसे ने गांधी जी की हत्या की . उनकी हत्या जिसे आज तक संघ परिवार गांधीवध कहता रहा है और गोपाल गोडसे की पुस्तक ‘गांधीवध क्यों’-संघ द्वारा प्रचारित किया जाता रहा है- के बाद संघ परिवार ने मिठाइयां बांटीं. सजा काट चुके अन्य आरोपियों की रिहाई पर संघ परिवार ने उनका अभिनंददन किया. साक्ष्य के अभाव में संघ को बरी किया जाना और बापू की हत्या पर संघ परिवार द्वारा खुशियां मानाना क्या साबित करता है?
मोदी का गांधी कनेक्शन यहां है. वे गांधी की ब्रांडिंग कर मार्केटिंग कर रहे हैं. गांधी के असंख्य कार्यक्रमों में से अपने लिए एक सुविधाजनक प्रोग्राम साफाई को चुन कर पूरे ताम-झाम से मार्केंटिंग करना गां धी प्रेम नहीं है.
रॉक्सटार मोदी बनाम गांधी
गांधी के संग मोदी के नाम को कोई संगत नहीं बैठता. महात्मा ने उपभोक्तावाद, बाजारवाद के खिलाफ सादगी, ग्रामोद्योग स्वालंबन द्वारा ग्राम स्वराज लेने की सीख दी. साम्प्रदायिक सौहार्द्र कायम करने के लिए उन्होंने अपनी कुरबानी दी. मोदी के सारे कार्यक्लाप गांधी के विचार के खिलाफ हैं. वे रोकस्टार की तरह चमक-दमक के शौकीन, प्रचार के भूखे और कार्पोरेट के पोस्टर बॉय बनकर उभरे हैं. उनकी आवाज व्यक्तित्व, चलने के अंदाज से ही 56 इंच सीने वाला दबंग दिखता है. अपनी यह छवि खुद मोदी को भी पसंद है और एक वर्ग विशेष को भी.
गांधी विचार हमें सभ्य, सुसंस्कृत विनती और सादगीपूर्ण होना सिखाता है.
1965 के आकाल में तत्कालीन प्रधान मंत्री लालबादुर शास्त्री ने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की जिसे सम्पूर्ण देश ने अनुसरण किया. शास्त्री जी की सादगी, विनम्रता और सच्चाई ने करोड़ों दिलों में जगह बनायी. उनकी अपील में राजनीतिक चतुराई नहीं . मोदी के किसी भी नारे और अपील में एक वर्ग को छोड़ आम जनता को भरोसा नहीं है. वे जनता से संवाद नहीं करते. भीड़ को प्रवचन देते हैं. कई बार उत्तेजित करते हैं. उनमें जुनून भरते हैं मरने-मारने का. उनकी कार्यशैली, उनका अतीत और वर्तमान भी- गुजरात दंगों में उनकी भूमिका उन्हें कभी सर्वप्रिय और विश्वसनीय नहीं बना सकती.
सत्येंद्र सिन्हा- जेपी आंदोलन के गवाह रहे, सामाजिक सरोकारों पर गहरी पैठ, पेशे से प्रकाशक, पटना में रहना-सहना
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