बेगूसराय के बुद्धिजीवीयो में सम्मानित द टाइम्स आफ इंडिया के पत्रकार,प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व सदस्य अरूण कुमार कैंसर की असाध्य बीमारी के से आज हार गए
गुरुवार की सुबह उन्होंने आखिरी सांस ली.
उन्होंने नौकरशाही डॉट इन के लिए भी कई लेख लिखे.
फेसबुक पर भी विभिन्न बिंदुओं को मजबूती से रखते थे. पत्रकारिता में निष्पक्षता के लिए वह जीवन भर संघर्ष करते रहे. अरुण कुमार ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य के रूप में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. दो साल पहले जब प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के तत्कालीन अध्यक्षण मार्कंडेय काटजू ने बिहार में प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल उठाया और उन्होंने प्रेस की आजादी पर आम लोगों, पत्रकारों और संस्थानों से विचार आमंत्रित किये तो इसमें भी अरुण कुमार ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
कोई डेढ़ साल पहले अरुण कुमार टाइम्स आफ इंडिया से रिटायर हुए थे. अऱुण कुमार रिटायरमेंट के बाद फेसबुक पर काफी सक्रिय रहे. उन्होंने अपना आखिरी पोस्ट 26 अक्टूबर 2015 को अपलोड किया था जिसमें उन्होंने समाज में उत्पाती लोगों को निशाने पर लिया था.
अरुण कुमार के फेसबुक वॉल से
समाज के दोहरे चरित्र पर भी अरुण कुमार ने एक पोस्ट 26 अक्टूबर को लिखा था. उन्होंने लिखा-
कुछ लोग यहां पर ऐसे हैं हर रंग में रंग बदलते हैं.
26 अक्टूबर- I am fine but not kicking
8 अक्टूबर- हे प्रभु जिस देह को
कभी दूर न लागे परदेस
आज उसकी गति दिखाइए
3 अक्टूबर- मेरे लिए बी पाजिटिव ब्लड की जरूरत है. यह काफी अर्जेंट है.
22 सितम्बर- कल से ही बूढा भाई कहने वाले अपने मित्र की सुबह सुबह याद आ जा रही है. वक्त के थपेड़ों ने किस किस को कहाँ पहुंचा दिया, जीवन के कई रंग दिखला दिए मगर हमारी मित्रता दूरी के बावजूद क्यों जिंदा रही, कह नहीं सकता ? मेरी तरफ से शायद ही कोई अतिरिक्त कोशिश कभी हो इसके लिए मुझे याद नही.जीवन के झंझावात को झेलते हुए, तूफानी दिनों को पार करते हुए, दिल पर कई जख्म झेलते यह शख्स अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता रहा और उन दिनों शायद ही उसने मुझे कभी याद किया. बाद में उन तूफानी दिनों की कहानियाँ सुनी सिर्फ मैंने. वैसे बिहार में हम जब तक रहे एक दुसरे के साथ खड़े दिखते थे. मगर अंदरूनी तन्तु हमेशा जिंदा रहा शायद.
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