मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ‘हे राम’ से ‘जयश्रीराम’ की यात्रा का दर्द सताने लगा है। दर्द का केअहसास भी होने लगा है। इसलिए इलाज में जुट गये हैं। आज मुख्यमंत्री आवास में नीतीश कुमार ने पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के तत्वावधान में मुसलमानों की बैठक आयोजित की। बैठक इस मायने में महत्वपूर्ण रही कि मंत्रिमंडल की पहली बैठक के 16 घंटे बाद ही अल्पसख्यकों के साथ बैठक की। भाजपा से कंधा मिलाने के बाद अल्पसंख्यकों के साथ नीतीश कुमार ने पहली बैठक की।
अल्पसंख्यकों की नाराजगी थामने का प्रयास शुरू
भाजपा के सहयोग का बता रहे औचित्य
प्राप्त जानकारी के अनुसार, नीतीश ने अल्पसंख्यकों को यह समझाने का प्रयास किया कि राज्य के विकास के लिए भाजपा के साथ जाना जरूरी था। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता से बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार के साथ समझौता करने के बजाय भाजपा के साथ समझौता अल्पसंख्यकों के हित में है। सीएम ने मुसलमानों के विकास के लिए किये गये कार्यों की चर्चा भी की।
बैठक में कई अल्पसंख्यक नेताओं ने भी नीतीश कुमार के निर्णय के प्रति अपनी सहमति जतायी। बैठक में सांसद कहकशां परवीन, विधान पार्षद गुलाम रसूल बलियावी के साथ ही जदयू के सभी विधायक और विधान पार्षद मौजूद थे। अधिकतर वक्ताओं ने नीतीश के भाजपा के साथ संबंधों को जायज ठहराया। हालांकि पार्टी के एक पदाधिकारी ने नीतीश कुमार की जमकर आलोचना भी की। उन्होंने कहा कि अब चार की जगह एक मंत्री अल्पसंख्यक रह गया है। यह कौन सा विकास है। अल्पसंख्यकों का वोट आपको भी मिला था तो आपने मंत्री का कोटा क्यों नहीं बढ़ाया। इसका किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस को मंत्री बनाये जाने पर भी आक्रोश था। परिवारवाद पर भी नीतीश की दोहरी नीति अल्पसंख्यकों को असहज लग रहा है।
जदयू की यह बेचैनी 27 जुलाई को भी दिख रही थी। सांसद आरसीपी सिंह कहकशां परवीन और गुलाम रसूल बलियावी को नीतीश के पक्ष में तर्क के आधार समझा रहे थे। वे भी भ्रष्टाचार का इलाज का ‘डॉक्टर’ भाजपा को बता रहे थे। दरअसल अल्पसंख्यक समाज मंत्री खुर्शीद अहमद उर्फ फिरोज के ‘जयश्रीराम’ के नारे को नहीं पचा रहा है। इसका विरोध भी पार्टी में शुरू हो गया है। वैसी स्थिति में जदयू को लेकर अल्पसंख्यकों का गुस्सा शांत करने का प्रयास शुरू हो गया है, लेकिन मुसलमानों के जायज सवालों का उचित उत्तर जदयू को नहीं मिल रहा है।