सीधी उंगली दिखाती आदमकद पोस्टर लोगों को मुसोलिनी और हिटलर की याद दिला रही है. हैरान करने वाले शब्दों- ‘जुमलों’, ‘जुल्मी’, ‘अपराध’, ‘अहंकार’ ‘अत्याचार’ आदि का प्रयोग लोगों को सकते में डाल रहा है.
अनिता गौतम, पॉलिटिकल एडिटर
पहली बार किसी विधानसभा चुनाव में बिना तिथि की घोषणा के पार्टी और नेताओं को इतनी मशक्कत करते देखा जा रहा है। चुनावी बिगुल फूंक कर हर पार्टियों के जनता तक जाने के लोकलुभावन तरीके शुरू हो गये हैं।
जाहिर है इस तरह शक्ति प्रदर्शन की जब होड़ लगती है तो अपनी बात रखने के लिए अलग अलग प्लेटफॉर्म की तलाश शुरू हो जाती है। बिहार सरकार को लोकसभा चुनाव में भाजपा के द्वारा बिहार में अच्छी सीट निकाल लेने का एक मजबूत पक्ष इंटर-नेट की दुनिया दिखी। सोशल साइट का विरोध करने वाले भी इसकी ताकत को समझ गये।
सत्ता जो न कराये
बिहार चुनाव में नीतीश और मोदी दोनों को यह बात समझ आ गई कि होर्डिंग्स और पोस्टर बैनर पर लोगों का ध्यान अधिक जाता है। सड़क पर आते जाते या फिर टेरेस पर खड़े होकर भी इन पोस्टरों और बैनरों को पढ़ा जा सकता है। यह अलग बात है कि इन सबसे हमारी ट्रैफिक व्यवस्था असहज हो सकती है, या फिर इन होर्डिंग्स के पीछे छिपकर रेलवे की जरूरी जानकारी या तापमान बोर्ड लोगों को नहीं दिख सकता है। खैर! इन सबसे हमारी राजनीतिक पार्टियों को क्या लेना देना है। उन्हें तो एन-केन-प्रकारेण बिहार की सत्ता पर काबिज होना है। फिर क्या है, चुनावी तिथि की घोषणा का इंतजार कौन करे।
पोस्टर वार
आम आवाम तक राजनेता पहुंचते इससे ज्यादा सशक्त माध्यम बना है, पोस्टर और होर्डिंग्स। राजधानी पटना से ही शुरू हो गया एक अघोषित पोस्टर-वार। इस सियासी पोस्टर वार के लिए फंड की आवश्यकता होती है, फिर छोटी मोटी पार्टिया इसमें कहां टिकने वाली हैं। जाहिर है, सिर्फ और सिर्फ नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी होर्डिंग्स पर छा गये हैं। हां, थोड़ी देर से ही सही, नीतीश कुमार के ‘चंदन और विष’ वाणी के बाद राजद प्रमुख लालू प्रसाद अपनी पत्नी के साथ अवश्य कूदते नजर आये हैं। कहने को तो नीतीश और लालू बड़े भाई और छोटे भाई बन कर चुनावी मैदान में साथ साथ हैं, पर उनका यह साथ राजधानी में लगे पोस्टरों मे कहीं भी नहीं दिखाई दे रहा है। अब तक लोगों ने बाहूबली नेताओं को भी चुनाव में हाथ जोड़े वोट अपील करते या घर घर जाकर, करबद्ध विनती करते ही देखा था। हर कोई इसी इंतजार में रहता था कि पांच साल बाद जब जनता की बारी आयेगी तब तो ये राजनेता अपने हाथ हमारे सामने जोड़ंगे। पोस्टर, बैनर और पंपलेट्स पर भी सफेद कुर्ते पायजामें में हाथ जोड़ने वाली तस्वीर ही होती थी। पर आज तस्वीर बिल्कुल बदली हुई है। सियासी जंग इन होर्डिंग्स वार में साफ साफ दिखाई दे रहा है।
सीधी उंगली दिखाती आदमकद तस्वीर लोगों को मुसोलिनी और हिटलर की याद दिला रही है। लोकतंत्र में हैरान करने वाले शब्दों मसलन ‘जुमलों’, ‘जुल्मी’, ‘अपराध’, ‘अहंकार’ ‘अत्याचार’ आदि का प्रयोग लोगों को सकते में डाल रहा है।
मतदाता इस बात पर दो राय हैं कि अबकी बार नीतीश कुमार या भाजपा सरकार.. ? बहरहाल, इन होर्डिंग्स पर खर्च किये जाने वाले पैसे और इनको लगाने के लिए इजाजत पर या तो नगर निगम कुछ बता सकता है या फिर कोई आर. टी. आई कार्यकर्ता। सवाल यह भी है कि सियासी जंग में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते ये होर्डिंग्स किसे कितनी सफलता दिलाते हैं?
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