ह्यूमन राइट्स वॉच: भारत मे अल्पसंख्यकों से भेदभाव सरकारी तंत्र की नीति
भारत: अल्पसंख्यकों को निशाना बनातीं सरकारी नीतियां, कार्रवाइयां
दिल्ली हिंसा का एक साल, जांच को प्रभावित करता मुस्लिम–विरोधी पूर्वाग्रह
(न्यूयॉर्क, 19 फरवरी, 2021)
– ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत में सरकारी तंत्र ने मुसलमानों के खिलाफ सुव्यवस्थित रूप से भेदभाव करने और सरकार के आलोचकों को बदनाम करने वाले कानूनों और नीतियों को अपनाया है. सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार में अन्तर्निहित पूर्वाग्रहों ने पुलिस और अदालत जैसी स्वतंत्र संस्थाओं में पैठ बना ली है, यह बेख़ौफ़ होकर धार्मिक अल्पसंख्यकों को धमकाने, उन्हें हैरान-परेशान करने और उनपर हमले करने की खातिर राष्ट्रवादी समूहों को लैस कर रही है.
23 फरवरी, 2021 को दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा के एक साल पूरे हो रहे हैं जिसमें 53 लोग मारे गए थे. मृतकों में 40 मुस्लिम थे. भाजपा नेताओं द्वारा हिंसा भड़काने और हमलों में पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता के आरोपों समेत पूरे मामले की विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच करने के बजाय, सरकारी तंत्र ने कार्यकर्ताओं और विरोध प्रदर्शन के आयोजकों को निशाना बनाया है. सरकार ने हाल ही में एक अन्य जन प्रतिरोध, इस बार किसान आन्दोलन पर कार्रवाई की है. इसने अल्पसंख्यक सिख प्रदर्शनकारियों को बदनाम किया है और अलगाववादी समूहों के साथ उनके कथित जुड़ाव की जांच शुरू कर दी है.
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “भाजपा द्वारा अल्पसंख्यकों की कीमत पर हिंदू बहुसंख्यकों को आलिंगनबद्ध करने के प्रयासों का सरकारी संस्थानों पर भी असर हुआ है, जो बिना भेदभाव के कानून द्वारा समान संरक्षण की अनदेखी कर रहे हैं. सरकार न सिर्फ मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को हमलों से सुरक्षा प्रदान करने में नाकामयाब हुई है, बल्कि वह कट्टरपंथियों को राजनीतिक संरक्षण प्रदान कर रही है और उनका बचाव कर रही है.”
सरकार के भेदभावपूर्ण नागरिकता कानून और प्रस्तावित नीतियों के खिलाफ सभी धर्मों के भारतीयों द्वारा महीनों तक चलाए गए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों के बाद, फरवरी 2020 में दिल्ली में हमले हुए. भाजपा नेताओं और समर्थकों ने राष्ट्रीय हितों के खिलाफ साजिश का आरोप लगाकर प्रदर्शनकारियों, खास तौर से मुसलमानों को बदनाम करने की कोशिश की.
इसी तरह, विभिन्न धर्मों के हजारों-हजार किसानों द्वारा नवंबर 2020 में सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किए जाने के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेताओं, सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों और सरकार परस्त मीडिया ने एक अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक, सिखों को बदनाम करना शुरू कर दिया. उन्होंने 1980 और 90 के दशक में पंजाब के सिख अलगाववादी विद्रोह का हवाला देते हुए सिखों पर यह आरोप लगाया कि उनका “खालिस्तानी” एजेंडा है.
8 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में विभिन्न शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में भाग लेने वाले लोगों को “परजीवी” बताया और भारत में बढ़ते सर्वसत्तावाद की अंतर्राष्ट्रीय आलोचना को “विदेशी विनाशकारी विचारधारा” कहा.
26 जनवरी को पुलिस और प्रदर्शनकारी किसानों, जिन्होंने दिल्ली में प्रवेश करने के लिए पुलिस बैरिकेड्स तोड़ डाले थे, के बीच हिंसक झड़पों के बाद सरकार ने पत्रकारों के खिलाफ निराधार आपराधिक मामले दर्ज किए, कई जगहों पर इंटरनेट बंद कर दिया, ट्विटर को पत्रकारों और समाचार संस्थानों सहित लगभग 1,200