15वीं विधान सभा के अंतिम सत्र के समापन के बाद का आज पहला दिन है। इसे आप 16वीं विधान सभा के इंतजार का पहला दिन भी कह सकते हैं। 16वीं विधान सभा का सबसे ज्यादा इंतजार विधान परिषद को है। क्योंकि सदन के आंतरिक ढांचे का स्वरूप विधान सभा में बनने वाली सरकार से तय होगा। इंतजार उनको भी है, जो विधान सभा का चुनाव लड़ना और जीतना चाहते हैं।
वीरेंद्र यादव
आज विधान सभा परिसर में उदासी छायी हुई थी। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। कुछ कर्मी सत्र के दौरान लगाए गए टेंट उजाड़ने में लगे हुए थे। परिसर में टहलते लोगों की संख्या भी नगण्य थी। सभा के पार्टिको के पास मार्शल भी दबावमुक्त थे। आम दिनों में बड़ी-बड़ी गाडि़यों से भरे रहने वाले परिसर में आज कुछ छोटी-छोटी गाडि़यां ही नजर आ रही थीं। बारिश के बाद तेज धूप की गरमी परेशान कर रही थी।
क्षेत्र में रवाना हुए विधायक
कल ही शुक्रवार को विधान सभा सदस्यों को सदन में जाने का आखिरी मौका मिला। हंगामे और शोर-शराबे के बीच विधान सभा स्थगित कर दी गयी। अब कोई सत्र नहीं होगा। 15वीं विधान सभा के सत्र का आखिरी दिन सबको अपने क्षेत्र में पहुंचने की बेचैनी थी। टिकट बचाने से लेकर सीट बचाने तक की चिंता। पार्टी नेताओं को अपना चेहरा दिखाने की ललक। यही शेष तीन-चार महीना है, जब लोकतंत्र जमीन पर नजर आता है। नेता पैर के नीचे जमीन तलाशते हैं। विधायकों को विधान सभा भंग होने के दिन तक वेतन व भत्ता मिलता रहेगा। वे सभा की समितियों के सदस्य भी बने रहेंगे। कमेटियों की बैठक में भी शामिल होते रहेंगे। सवाल पूछने और जवाब की तैयारी से मुक्त रहेंगे। 16वीं विधान सभा के गठन तक सभा सचिवालय तनावमुक्त रह सकता है।
सरकार का कयास
विधान सभा में चर्चा का विषय 16वीं विधान सभा चुनाव से लेकर चुनावी प्रक्रिया तक बन गया है। किसको टिकट मिलेगा, कौन होगा बेटिकट। किस पार्टी को कितनी सीट मिलेगी और कौन ‘सिंहासन’ पर बैठेगा। अब विधान सभा के प्रेस रूम से कैंटिन तक सब जगह सरकार बनाने के अपने-अपने दावे और कयासों का दौर जारी रहेंगे।