लालू-नीतीश गठबंधन में सीटों की संख्या के बंटवारे के बाद भाजपा के सहयोगी दल भी सीट बंटवारे का दबाव बढ़ाने लगे हैं। लोजपा व रालोसपा ने इस संबंध में बयानबाजी शुरू कर दी है। लेकिन फिलहाल भाजपा सीटों के बंटवारे को लेकर हड़बड़ी में नहीं है। भाजपा प्रथम फेज के मतदान के लिए अधिसूचना जारी होने के बाद ही सीटों की संख्या और नामों को अंतिम रूप से अपनी सहमति देगी।
वीरेंद्र यादव
आक्रामक कंपेन
भाजपा सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पार्टी 180 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार देगी। शेष 50 से 55 सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ेगी। एनडीए गठबंधन में सहयोगियों की संख्या भले बढ़ जाए, भाजपा सहयोगियों के लिए सीट बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। भाजपा की तैयारी भी उसी स्तर की है। भाजपा परिवर्तन रथ और यात्रा के नाम पर राज्य व्यापी जनसंपर्क में जुट गयी है। इसके लिए व्यापक कंपेन शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुजफ्फपुर, गया और सहरसा में राजनीतिक परिवर्तन रैली कर चुके हैं। जबकि लोजपा और रालोसपा नेताओं का संगठन स्तर पर कोई सक्रियता नजर नहीं आ रही है।
भाजपा का तर्क
भाजपा सूत्रों का मानना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 40 से 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए थे। यानी 75 प्रतिशत भागीदारी भाजपा की थी। विधान परिषद चुनाव में भी भाजपा ने 24 में से 6 सीट लोजपा व रालोसपा को दिये थे। यानी सहयोगियों की भागीदारी 25 फीसदी ही रही। ठीक वैसा ही फार्मूला विधानसभा चुनाव में अपनाया जाएगा। इस फार्मूले के आधार पर भाजपा का दावा 180 से अधिक सीटों पर बनता है। लेकिन भाजपा के सहयोगी इस दावे को कितना स्वीकार करेंगे, कहना कठिन है। लेकिन जो राजनीतिक माहौल बन रहा है, उसमें एनडीए के घटक दलों की सीमा और संभावना भाजपा से आगे नहीं बढ़ पाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आक्रामक प्रचार रणनीति को रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा या जीतनराम मांझी किस हद तक ‘ नकार’ पाएंगे, इस पर ही सहयोगियों की दावेदारी निर्भर करेगी।
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