मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी 20 फरवरी को इस्तीफा दे देंगे। लेकिन इससे पहले वह विश्वास मत पर मतदान करवाने चाहते हैं। वजह स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री अपनी भावी रणनीति में भाजपा के रुख को स्पष्ट करना चाहते हैं। क्योंकि भविष्य के मांझी का हर कदम भाजपा के आसपास केंद्रित होगा। 20 फरवरी को सीएम मांझी को विधान सभा में बहुमत साबित करना है।
वीरेंद्र यादव
सीएमओ सूत्रों की माने तो सीएम मांझी ने यह मान लिया है कि उनके दिन अब गिनते के रह गए हैं, लेकिन भागने के बजाये ‘शहीह’ होने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता और उपयोगिता बनी रहे। फिलहाल मांझी के लिए जदयू को समर्थन दे रहे 130 विधायकों को तोड़ना अभी संभव नहीं दिख रहा है। नीतीश खेमे में मांझी के प्रति सहानुभूति रखने वाले कई विधायकों ने बातचीत में स्वीकार किया कि अभी नीतीश के विरोध का उचित समय नहीं है। मांझी इतना सक्षम नहीं है कि भाजपा में टिकट दिलाव सकें। वैसी स्थिति में बगावत करने का साइड इफेक्ट ज्यादा होगा। उधर भाजपा सूत्रों का कहना है कि मांझी को समर्थन देने के बाद भी बहुमत का जुगाड़ करना संभव नहीं है। क्योंकि मांझी राजनीतिक रूप से इतने ताकतवर नहीं हैं कि बागियों को सुरक्षा प्रदान कर सकें।
निशाना साध रही भाजपा
राजनीतिक जानकारों की मानें तो भाजपा राज्यसभा उपचुनाव की स्थिति पैदा करना चाहती है और नीतीश कुमार पर निशाना साधना चाहती है। उसे मांझी के गिराने या बचाने में कोई रुचि नहीं है। उसका मकसद सिर्फ नीतीश कुमार को हलकान करने की है। सीएम मांझी की आड़ में अपने मकसद में भाजपा सफल हो सकती है। जहां तक हॉर्स ट्रेडिंग की बात है, उस मामले में नीतीश से प्रशिक्षण लिया जा सकता है। कुल मिलाकर, जीतनराम मांझी के सत्ता के दिन गिनते के रह गए हैं, लेकिन वह एक-एक पल नीतीश को चिढ़ा कर और उनका माखौल बनाकर गुजरना चाह रहे हैं।