विधान सभा चुनाव में एनडीए की सीटों का विवाद हल हो गया है। लेकिन सीटों की कवायद को परिणति तक पहुंचाने के लिए भाजपा को कड़वे घूंट पीने पड़े हैं। भाजपा शुरू से 180 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी। लेकिन गठबंधन में जीतनराम मांझी को जोड़े रखने के लिए उसने 20 सीट मांझी को छोड़ना स्‍वीकार कर लिया।nda

वीरेंद्र यादव, बिहार ब्‍यूरो प्रमुख 

 

प्राप्‍त जानकारी के अनुसार, जीतनराम मांझी की विश्‍वसनीयता भाजपा के लिए संशय में रही थी। मांझी किस ‘करवट’ बैठेंगे, भाजपा को भरोसा नहीं था। मांझी अपने ‘दोधारी बयान’ के कारण खुद हास्‍यास्‍पद होते जा रहे थे। वैसे माहौल में भाजपा के लिए मांझी को जोड़े रखना जोखिम भरा लग रहा था। इसके बावजूद भाजपा मांझी को छोड़ना नहीं चाहती थी। क्‍योंकि बिहार में चमार व दुसाध के बाद सर्वाधिक संख्‍या मुसहरों की है। बिहार में मुसहरों की संख्‍या लगभग 21 लाख है और यह आबादी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।

 

सीटों का फार्मूला

भाजपा ने लोजपा व रालोसपा के लिए एक फार्मूला बनाया था। उसके अनुसार एक लोकसभा सीट के बदले 6-8 विधान सभा सीट देने का भरोसा भाजपा ने दिलाया था और इससे दोनों खेमा संतुष्‍ट था। लेकिन मांझी की एंट्री ने फार्मूला को ही मिट्टी में मिलने वाला लगने लगा। इसी वजह से रालोसपा व लोजपा ने सीटों के लिए दबाव बनाना शुरू किया। वैसे में भाजपा भी दबाव में आ गयी। उसने रालोसपा व लोजपा की सीटों में कटौती करने के बदले खुद त्‍याग करना आवश्‍यक समझा। वजह साफ है कि वह 21 लाख मुसहरों के वोटों की अनदेखी नहीं कर सकती थी। इसलिए भाजपा ने 180 के बजाये 160 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया और इस फैसले से सभी खेमों को संतुष्‍ट रखना संभव हो सका। भाजपा के लिए सीट से ज्‍यादा नीतीश कुमार की विदाई महत्‍वपूर्ण है और इसीलिए भाजपा ने सहयोगियों को नाराज करने के बजाए खुद ही नुकसान उठाना फायदेमेंद समझा।

By Editor

Comments are closed.


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427