लफ्फाजी नहीं, आंकड़ों से समझिये कैसे 2019 में BJP का बिहार में डूबना तय है- Irshadul Haque का विश्लेषण
NDA ने अपनी सीट शेयरिंग की घोषणा कर दी है. तमाम सहयोगी दल चुनावी जंग के लिए कमर कस चुके हैं. पर चुनाव परिणाम से पहले ही कुछ निश्चित परिणा सामने आ चुके हैं. वह ये कि भाजपा अगर अपनी सभी 17 सीटें भी जीत ले तो भी वह 2014 वाली ताकत नहीं प्राप्त कर सकेगी. यही युनिवर्सल ट्रुथ है.
गोया 2019 के चुनाव से पहले अघोषित रूप से घोषित हो चुका है कि इस चुनाव में पार्टी स्तर पर भाजपा सबसे अधिक घाटे में रहेगी. किसी भी दल के लिए चुनाव नतीजे से पहले नतीजा जान लेना, और वह भी अपने कमजोर हो जाने की गारंटी के प्रति आश्वस्त हो जाना, मनोबल का कमजोर हो जाना है.
भाजपा की तकदीर में लिखा अकाट सच यही है.
चिंता में हैं मोदी-शाह
आगामी चुनाव में भाजपा के कद्दावर नेताओं नरेंद्र मोदी व अमित शाह की चिंतायें यहीं खत्म नहीं हो रहीं. चुनाव से पहले उसके तनाव व दबाव में रहने के और भी कई कारण हैं जो उसके माथे पर चिंता की लकीरें गाढ़ी कर देने वाले हैं. आइए हम भाजपा की चिंताओं को तथ्यों, आंकड़ों में समझने की कोशिश करते हैं.
2014 के चुनाव में जदयू द्वारा उसके गठबंधन से अलग हो जाने के जबर्दस्त झटके के बाद भी भाजपा का मनोबल नहीं गिरा था. नरेंद्र मोदी नामक तूफान के कारण उसका उत्साह सातवें आसमान पर था. उसने लोजपा और रालोसपा के सहारे 40 में से 31 सीटें झटक ली थी.
वहीं भाजपा, 2014 के 31 सीटों के बरअक्स इस बार महज 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. तब उसने 22 सीटें जीती थीं. गोया चुनाव से पहले ही उसने पिछली बार के मुकाबले 5 जीती हुई सीटें गवां दीं.
पिछली सफलता दोहराने पर भी नुकसान
अब आइए इसके दूसरे पक्ष पर नजर डालते हैं. पिछली बार उसकी सफलता दर 70.96 प्रतिशत थी. अगर वह इस बार भी इसी सफलता दर को बरकरार रखती है तो भी उसे बमुश्किल 12 सीटें ही मिलेंगी. इसका मतलब हुआ 2014 के मुकाबले किसी भी हाल में उसे 10 सीटें कम मिलेंगी ही मिलेंगी. और अगर पांच साल के मोदी राज से बढ़ी एंटि एंकम्बेंसी ने असर दिखाया तो सफलता के ये आंकड़े और नीचे आना निश्चित है. ऐसे में भाजपा 10 सीटों के नीचे भी सिमट सकती है. याद रखिए कि यह NDA के सबसे बड़े घटक दल यानी भाजपा की बात हुई.
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अब आइए NDA के दूसरे सहयोगी जदयू और लोजपा की बात भी कर लें.
सबसे कूल कूल और सकारात्मक विश्लेषणात्म दृष्टि डालने पर अगर हम मोटामाटी भी कहें कि जदयू 17 में से जितनी भी कम से कम सीटें जीते वह 2014 की बुरी स्थिति यानी 2 सीटों पर तो नहीं सिमटेगी. यानी उसका प्रदर्शन 2014 की तुलना में अच्छा ही रहेगा क्योंकि उसे भाजपा के कैडर वोट तो बोनस के तौर पर मिलेंगे. यानी यह कह सकते हैं कि जदयू, पिछले चुनाव के मुकाबले मजबूत होके निकलेगा.
रही बात लोजपा की तो उसके लिए चुनौतियां भाजपा की तरह तो नहीं, पर पिछले चुनाव के मुकाबले चैलेंज ज्यादा ही होगा. लोजपा ने पिछले चुनाव में 6 सीटों पर कामयाबी हासिल की थी. वह अपनी इन सीटों को बरकार रखने की चुनौती से जूझेगी.
निष्कर्ष
यह गारंटी है कि भाजपा का ह्रास होगा. पिछले चुनाव के 22 सीटों के मुकाबले वह अधिकतम 10-12 या उससे भी कम पर लुढ़क कर जायेगी या निश्चित है. वहीं दूसरी तरफ जदयू की पिछले चुनाव में जीती 2 सीटों से आगे जाने की संभवाना है और जहां तक NDA की तीसरी सहयोगी एलजेपी की बात है तो वह अपने पिछले प्रदर्शन को दोहरा पाये इसकी उम्मीद तो की जा सकती है पर इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता.
यहां यह भी जिक्र करता चलूं कि अगर उसके सहयोगी दल- जदयू व लोजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया तो अगली बार भाजपा के लिए ये दल सरदर्द ही बनेंगे.