एनसीआरबी के आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि 2012 में भारत की जेलों में 21 प्रतिशत विचाराधीन कैदी मुस्लिम हैं जबकि इनमें से केवल17.5 प्रतिशत दोषी पाये गये.
ज़ीशान शेख़
जबकि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के इस आंकड़ें के विश्लेषण से पता चला है कि 69.92 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हिंदू हैं और उनमें 71.35 प्रतिशत दोषी साबित हुए हैं.
इसी तरह सिख विचाराधीन कैदियों का प्रतिशत 3.97 है जबकि आरोप सिद्ध सिख कैदियों की संख्या 4.94 प्रतिशत है. वहीं ईसाई कैदियों के मामले में यह अनुपात 3.5 प्रतिशत व 3.99 प्रतिशत है.
इस आंकड़ें पर समाजशास्त्रियों की प्रतिक्रिया में बताया गया है कि यह आंकड़े पुलिस मशीनरी के पक्षपात होने का प्रमाण है.
देश के 23 राज्यों में विचाराधीन मुस्लिम कैदियों की संख्या आरोप सिद्ध मुस्लिम कैदियों से काफी ज्यादा है. सिर्फ कर्नाटक, मणिपुर, नागालैंड, तमिलनाडु और उत्तराखंड ऐसे राज्य हैं जहां आरोप सिद्ध मुस्लिम कैदियों का अनुपात विचाराधीन कैदियों से ज्यादा है.
2002 के आंकड़ों के अनुसार देश की जेलों में बंद विचाराधीन मुस्लिम कैदियों की संख्या 24 प्रतिशत के करीब थी जबकि 16.65 प्रतिशत के आरोप ही साबित हो सके थे.
इस संबंध में टाटा इस्टिच्यूट ऑफ सोशल साइंस के अपराध विज्ञान व न्याय विभाग के अध्यक्ष विजय राघवन का कहना है कि “इसके सिर्फ दो कारण हो सकते हैं- या तो मुस्लिम उम्दा वकील रखते हैं जो उन्हें दोषमुक्त कराने में कामयाब हो जाते हैं या फिर उनके खिलाफ लगाये गये आरोप कमजोर होते हैं”.
इस संबंध में विख्यात वकील मजीद मेनन का कहना है कि यह आंकड़े इस संदेह को प्रबल करते हैं कि पुलिस बलों में मुसलमानों के खिलाफ पक्षपात किया जाता है. यह चिंता की बात है और इसे खत्म किया जाना चाहिए.
साभार इंडियन एक्सप्रेस