रिहाई मंच ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जयपुर टाडा कोर्ट के फैसले को पलटते हुए डाक्टर जलीस अंसारी को आतंकवाद के आरोप से 23 साल बाद बरी किए जाने को खुफिया एजेंसियों के मुंह पर तमाचा करार दिया है।
परवेज आलम, लखनऊ से
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा है कि जलीस अंसारी और उनके साथी बद्रे रहमत के बरी कर दिए जाने से मुसलमानों को आतंकवादी साबित करने की साजिश पर से एक बार और पर्दा उठ गया है। क्योंकि जलीस अंसारी और उनके साथ आधा दर्जन लोगों पर बाबरी मस्जिद की शहादत की पहली बरसी पर 5-6 दिसम्बर 1993 की रात को देश के कई हिस्सों में ट्रेनों में विस्फोट करने का आरोप था जिसमें दो लोग मारे गए थे और 22 घायल हुए थे।
उन्होंने कहा कि इन्हीं गिरफ्तारियों के बाद से मुस्लिम युवकों को बाबरी मस्जिद विध्वंस का बदला लेने के नाम पर पूरे देश से आने वाले वक्तों में पकड़ने के अभियान की शुरूआत खुफिया एजेंसियों ने की थी। उन्होंने कहा कि डाक्टर जलीस अंसारी केस को खुफिया एजेंसियां अपनी बहादुरी और टेरर माड्यूल को ध्वस्त करने की क्षमता के बतौर इस हद तक प्रचारित करती रहीं हैं कि आईबी के ज्वांईट डायरेक्टर रहे मलयकृष्ण धर ने अपनी पुस्तक ‘ओपन सिक्रेट्स’ में इसका कई जगह जिक्र करते हुए इसे खुफिया विभाग की शानदार सफलता बताया था।
उन्होंने कहा कि यह फैसला इसलिए और भी अहम हो जाता है कि इस पुस्तक में मलयकृष्ण धर ने इस बात को कई जगह स्वीकार किया है कि वे आरएसएस की विचारधारा से काफी प्रभावित रहे हैं और खुद उनके घर पर बाबरी मस्जिद को तोड़ने की साजिशें रची जाती थीं। जिसमें संघ और भाजपा के बड़े-बड़े नेता शामिल होते थे। पुस्तक में धर ने यह भी खुलासा किया है कि खुफिया विभाग के दिल्ली स्थित आनंद पर्वत दफ्तर में आरएसएस की विचारधारा के अनुसार अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जाती है।
आशंका मजबूत हो जाती है कि आरएसएस को बम विस्फोट करने की ट्रेनिंग देने और संघ तथा आईबी द्वारा संयुक्त रूप से विस्फोट की घटनाओं को अंजाम देने के बाद मुस्लिम युवकों को फंसाने की अब तक चली आर रही आईबी की रणनीति जलीस अंसरी केस के दौर में ही मलयकृष्ण धर की अगुवाई में बनी थी।
राजीव यादव ने कहा कि डाक्टर जलीस अंसारी और उनके साथ फंसाए गए बेगुनाहों के बरी होने के बाद यह जरूरी हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट 1994 में हुई इन गिरफ्तारियों में खुफिया विभाग और संघ परिवार की साम्प्रदायिक भूमिका की जांच कराए क्योंकि उनपर झूठे मुकदमे लादने वाली एजेंसी संघ परिवार के प्रभाव में थी। जिसके चलते न सिर्फ कुछ लोगों की जिंदगी के 23 साल बर्बाद हो गई बल्कि पूरे मुस्लिम समाज की छवि आतंकवादी की बना दी गई। उन्होंने कहा कि इस फैसले के बाद 5-6 दिस्मबर 1993 की रात को हैदराबाद, कानपुर और जयपुर में ट्रेनों में हुई विस्फोटों में भी खुफिया विभाग और आरएसएस की भूमिका की जांच होनी चाहिए जिसके आरोप में ये फंसाए गए थे और जिसमें 2 लोगों की मौत और 22 घायल हो गए थे।
रिहाई मंच के महासचिव ने कहा कि इस फैसले को अगर मलयकृष्ण धर की पुस्तक में स्वीकार किए गए तथ्यों की रोशनी में देखा जाए तो यह आशंका मजबूत हो जाती है कि आरएसएस को बम विस्फोट करने की ट्रेनिंग देने और संघ तथा आईबी द्वारा संयुक्त रूप से विस्फोट की घटनाओं को अंजाम देने के बाद मुस्लिम युवकों को फंसाने की अब तक चली आर रही आईबी की रणनीति जलीस अंसरी केस के दौर में ही मलयकृष्ण धर की अगुवाई में बनी थी।