करीब ढाई दशक बाद पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान का नजारा बदला हुआ होगा, जब धोती, कुर्ता और गांधी टोपी संस्कृति का व्यक्ति स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराएगा। मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का पहनावा झक धोती, कुर्ता और बंडी है। लेकिन सवाल यह है कि 15 अगस्त को गांधी मैदान में उनके सिर पर टोपी होगी या नहीं।
बिहार ब्यूरो प्रमुख
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी कांग्रेस संस्कृति व पृष्ठभूमि के नेता हैं। वह 1980 और 1985 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे और चुने गए थे। उन्हें मंत्री बनने का मौका भी उसी दौरान मिला। वह कांग्रेस छोड़ने के बाद जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल होते हुए जनता दल यूनाइटेट तक पहुंचे। इस दौरान भी मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया। उनकी पार्टी बदली, लेकिन पहनावा नहीं बदला। जिस सामाजिक पृष्ठभूमि से आए थे, वहां कपड़ों का बहुत ज्यादा शौक नहीं रहा होगा, लेकिन कपड़ों की साफ-सफाई से इंकार नहीं किया जा सकता है।
पटना के गांधी मैदान में 1989 में पंद्रह अगस्त को तत्कालीन मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह ने धोती-कुर्ता के साथ सिर पर गांधी टोपी पहनकर तिरंगा लहराया था। इसके बाद वह दौर खत्म हो गया। लालू यादव व नीतीश कुमार दोनों समाजवादी पृष्ठभूमि के थे, इस कारण गांधी टोपी कार्य व्यवहार में कहीं नहीं था। सिर्फ गांधी मैदान ही क्यों, 1990 के बाद से गांधी टोपी राजनीतिक कल्चर से समाप्त होती गयी। नयी पीढ़ी ने धोती को भी त्याग दिया।
इस बार 15 अगस्त को जीतनराम मांझी गांधी मैदान से प्रदेश को संबोधित करेंगे। वह खुद कांग्रेस संस्कृति के हैं और सरकार को कांग्रेस का समर्थन भी प्राप्त है। बिहार के राजनीतिक गलियारे में भी यह चर्चा है कि वह अपने व्यक्तित्व का फिर से कांग्रेसीकरण करना चाहते हैं। इसकी वजह है कि आज भी गांव-गांव में बसे कांग्रेसी को वह अपनी ओर आकर्षित कर सकें। बिहार के बदलते राजनीतिक हालात में वह अब अपनी छवि गढ़ने को बेताब हैं और इस नयी छवि को गढ़ने में गांधी टोपी भी सहायक हो सकती है।