25 वें वर्ष में RJD का नया प्रयोग, अब वैचारिक हथियार से लड़ाई

आज तेजस्वी ने बड़ी घोषणा की। कहा, हमारे पास बड़ा सोशल कैपिटल है, अब Intellectual Capital (बौद्धिक या वैचारिक संपदा) बढ़ानी है। पार्टी को नई पहचान देनी है।

बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने राजद के जिला-प्रखंड अध्यक्षों के प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करते हुए आज बहुत बड़ी बात कही। उन्होंने पार्टी स्थापना के 25 वें वर्ष में पार्टी को एक नई पहचान देने का आह्वान किया। कहा कि समय बदला है और हमें भी बदलना है। हमारे पास सोशल कैपिटल बहुत बड़ा है। अर्थात हमारा सामाजिक आधार बहुत बड़ा है। अब हमें बौद्धिक( वैचारिक) संपदा बढ़ानी है।

तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया- राजद के पास बहुत बड़ा Social Capital है। अब हमें राजद में Intellectual Capital को बढ़ावा देना है। हमारा उद्देश्य पार्टी को राष्ट्रीय पहचान देना है। राजनीति के इस बदलते दौर में हमें भी अपने आप को बदलना है। कैसे बदलेंगे? इसी के क्रम में ऐसे प्रशिक्षण शिविर लगातार चलते रहेंगे।

तेजस्वी यादव के कहने का अर्थ क्या है? Intellectual Capital का अर्थ होता है अपने कार्यकर्ता-नेता की वैचारिक क्षमता का विकास, जिससे वे नई चुनौतियों का बखूबी सामना कर सकें। इसका यह अर्थ भी है कि राजद से बौद्धिक वर्ग, लेखक-बुद्धिजीवी को जोड़ना। तेजस्वी यादव ने कहा कि समय बदला है, इसलिए हमें भी बदलना होगा।

समय किस प्रकार बदला है? आज राजनीति में नए-नए नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं खासकर सांप्रदायिक राजनीति देश के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है। हिंदुत्व के नाम पर लोगों के दिमाग में जहर डाला जा रहा है। अर्थव्यवस्था चौपट होने, रोजगार खत्म होने, छोटे व्यवसाय पर हमले हो रहे हैं। कभी तालिबान, कभी अब्बाजान से लेकर गांधी की विचारधारा पर हमले किए जा रहे हैं।

अर्थव्यवस्था को मुक्त करने के नाम पर देश की संपदा बेची जा रही है। इस सबका मुकाबला करना है। यहां तक कि सामाजिक न्याय के मुद्दे भी बदल गए हैं। कभी खटिया पर बैठने न देने का सवाल था, लेकिन आज वह सवाल खत्म हो गया है। आज सामाजिक उत्पीड़न का स्वरूप ज्यादा महीन हो गया है। बेतहाशा निजीकरण से सर्वाधिक नुकसान वंचित वर्ग का हो रहा है।

कभी जनसंख्या को मुद्दा बना दिया जाता है। इसके पीछे राजनीतिक निशाने पर एक खास वर्ग होता है, लेकिन नुकसान देश का, राजद जैसे दलों का होता है। आज ही प्यू रिसर्च की रिपोर्ट द हिंदू अखबार ने प्रकाशित की है। इसके अनुसार मुसलमानों की प्रजनन दर 1992 में प्रति महिला 4.4 बच्चे से 2015 में 2.6 बच्चे हो गए हैं। खुद भारत सरकार ने माना है कि हिंदू खतरे में नहीं हैं। ऐसे सभी सवालों का जवाब देने के लिए कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण जारी रहेगा।

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