यूपी में एक निचली अदालत द्वारा मुस्लिम युवकों को आतंकी घटना से बरी किये जाने के बाद सपा सरकार द्वारा इसके खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील किये जाने पर सामाजिक संगठनों में आक्रोश है.
परवेज आलम, लखनऊ से
आतंकवाद के आरोपों से निचली अदालत द्वारा बरी किए गए मुस्लिम युवकों के मामले में सपा सरकार ने हाल में ही उच्च न्यायालय में अपील दायर की है. उत्तर प्रदेश सरकार की इस कार्रवाई की भरसक निंदा की जा रही है और कई मानवाधिकार संगठन इसमें प्रदेश सरकार के खिलाफ आ चुके हैं.
लखनऊ के सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने इसे अखिलेश यादव सरकार की एक और मुस्लिम विरोधी साम्प्रदायिक कार्रवाई करार दिया है.
इसके साथ ही रिहाई मंच ने मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित पर से एनआईए द्वारा मकोका हटाने को संघी साज़िश करार दिया है.
विस्फोट की साजिश का झूठा आरोप
ज्ञात हो कि बीते साल 2 अक्टूबर को जलालुद्दीन, नौशाद, अजीजुर रहमान, शेख मुख्तार, मोहम्मद अली अकबर हुसैन और नूर इस्लाम मंडल को लखनऊ की विशेष न्यायाधीश (एससीएसटी) अपर जिला एवं सत्र न्यायालय ने बरी कर दिया था. इन मुस्लिम युवकों पर लखनऊ में विस्फोट की रणनीति बनाने के आरोप के साथ ही उनसे भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद करने का दावा एसटीएफ ने किया था.
गौरतलब है कि अदालत ने अपने फैसले में लिखा था ‘मामले की परिस्थतियों व साक्ष्य की भिन्नताएं व विसंगतियां इस बरामदगी को संदेहास्पद बनाती हैं और मामले की परिस्थतियों से यह इंगित हो रहा है कि अभियुक्तगण को पुलिस कस्टडी रिमांड में लेकर उनके खिलाफ फर्जी बयानों के आधार पर यह बरामदगी भी प्लांट की गई है.’
जख्मों पर सपा सरकार ने छिड़का नमक
एडवोकेट मोहम्मद शुऐब सामाजिक संगठन रिहाई मंच के अध्यक्ष भी हैं और साथ ही साथ वे इन अभियुक्तों के वकील भी हैं. बातचीत में उन्होंने बताया, ‘सपा ने आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए बेगुनाहों को छोड़ने का वादा तो पूरा नहीं किया, उलटा जो लोग अदालतों से बरी हुए हैं अब उनके खिलाफ भी सरकार उच्च न्यायालय में अपील करके मुसलमानों के जख्मों पर नमक छिड़क रही है.’
सरकार द्वारा 29 फरवरी 2016 को उच्च न्यायालय में फैसले के खिलाफ अपील दायर की गयी है. इसकी पहली सुनवाई 10 मई को पड़ी थी, लेकिन सरकारी वकील ने उसे मुल्तवी करा लिया और अब अगस्त में सुनवाई की जाएगी.
एडवोकेट शुऐब ने आगे कहा, ‘इन बेगुनाह मुस्लिमों में से अधिकतर पश्चिम बंगाल के हैं, जिन्हें यहां जमानतदार तक नहीं मिले और किसी तरह उन्होंने खुद अपनी पत्नी, सालों और दूसरे करीबियों को जमानतदार बना कर इन्हें छुड़वाया था. ऐसे में उनकी रिहाई के खिलाफ अपील सपा सरकार की विशुद्ध साम्प्रदायिक और मुस्लिम विरोधी कार्रवाई है.’
मुज़फ्फरनगर दंगों के आरोपी संगीत सोम और सुरेश राणा के खिलाफ़ पुख्ता सबूत होते हुए भी प्रदेश सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. इसके साथ ही भाजपा नेता वरुण गांधी के धमकी भरे बयान के मामले में एक के बाद एक सभी गवाह मुकर गए थे. इसकी तसदीक़ दो साल पहले आई ‘तहलका’ की एक रिपोर्ट करती है.
राजीव यादव इस बाबत कहते हैं, ‘मुलायम सिंह यादव तो संघ के पुराने स्वयंसेवक हैं. इससे पहले भी मुलायम सिंह बाबरी मस्जिद विध्वंस के मास्टरमाइंड लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ बाबरी ध्वंस के आरोपों को वापस ले चुके हैं और आज उनके बेटे भी खुलकर उनके पदचिन्हों पर चल रहे हैं. बम बनाते समय कानपुर के बजरंगदल के कार्यकर्ताओं की मौत हो गयी थी, उनके पास से कई किलो विस्फोटक भी बरामद हुए थे. सरकार में आते ही इस मामले पर फाइनल रिपोर्ट लगवा दी गयी और कानपुर दंगे के षडयंत्रकर्ता एके शर्मा को डीजीपी बना दिया गया.’
सपा के कथित मुस्लिम विरोधी नीति के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, ‘जहां आज भी जहां कई बेगुनाह नौजवान आतंकवाद के आरोप में जेलों में बंद हैं तो वहीं इन आरोपों से बरी हुए वासिफ हैदर जैसे मुस्लिम युवक ठोकरें खाने को मजबूर हैं. अखिलेश सरकार ने बेगुनाहों को पुनर्वास और मुआवज़े का वादा दिया था लेकिन उन्हें दिया यह वादा भी पूरा नहीं किया.’