विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि चार जून को न सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की कुर्सी जा रही है, बल्कि बिहार में हमारे चाचा (नीतीश कुमार) बड़ा फैसला लेंगे। पिछड़ों की राजनीति और जदयू को बचाने के लिए वे बड़ा कदम उठा सकते हैं। तेजस्वी यादव के इस बयान से राजनीतिक हड़कंप मच गया है।
पिछले कई दिनों से पटना के राजनीतिक गलियारे में चर्चा चल रही है कि नीतीश कुमार भाजपा के साथ जा कर सहज महसूस नहीं कर रहे हैं। 2020 चुनाव में भाजपा ने चिराग पासवान को खड़ा करके जदयू को तीसरे नंबर की पार्टी बना दिया और अब 2024 लोकसभा चुनाव में फिर से भाजपा ने उनके साथ खेला कर दिया है। सवर्ण मतदाताओं की उदासी और भाजपा की जदयू की सीटों पर सक्रियता नहीं रहने से अब सभी लोग मान रहे हैं कि जदयू की सीटें कम हो रही हैं। उसे भारी नुकसान हो सकता है।
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कल्पना सोरेन की सभाओं में तेजस्वी जैसी भीड़
2019 चुनाव में जदयू 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसके 16 प्रत्याशी जीते थे। इस बार पार्टी 16 सीटों पर लड़ रही है। इस बार कहा जा रहा है कि जदयू दो अंकों में शायद नहीं पहुंच पाए। उसकी सीटें दस से कम हो जाएंगी। इस स्थिति में पार्टी के अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा। जदयू के सामाजिक आधार को पहले ही भाजपा तोड़ कर अपनी तरफ करने में लगी है और सांसदों की संख्या बहुत कम हो जाने से जदयू का भविष्य संकट में होगा। इस स्थिति में नीतीश कुमार पिछड़ों की राजनीति को बचाने को लिए कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि वे भाजपा का साथ छोड़कर फिर से राजद के साथ जा सकते हैं। ऐसा मानने वालों का कहना है कि भले ही नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव और लालू यादव पर व्यक्तिगत हमले किए, लेकिन तेजस्वी ने कभी पलटवार नहीं किया। उन्होंने हमेशा कहा कि नीतीश जी उनके गार्जियन हैं। इस तरह तेजस्वी ने कभी नीतीश के साथ संबंधों को हद से ज्यादा खराब नहीं होने दिया। इसलिए नीतीश कुमार अगर साथ आने की पेशकश करते हैं, तो तेजस्वी को कोई परेशानी नहीं होगी।