बिहार की महागठबंधन सरकार ने दलित-पिछड़ों-अतिपिछड़ों का आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया था, जिसे पटना उच्च न्यायालय ने रोक दिया था। अब राजद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। राजद की याचिका पर नोटिस जारी होने से राज्य के दलित-पिछड़ों-अतिपिछड़ों में फिर से उम्मीद जगी है। अगर सुप्रीम कोर्ट 65 प्रतिशत आरक्षण पर पटना हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर देता है, तो यह राजद की बड़ी जीत मानी जाएगी, वहीं भाजपा-जदयू की परेशानी बढ़ सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर कार्रवाई होने से राजद में खुशी है। पार्टी ने कहा कि राजद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार आरक्षण संशोधन कानून को रद्द करने के पटना HC के आदेश के विरुद्ध नोटिस जारी किया। राजद वंचितों, उपेक्षितों के आरक्षण और अधिकार को लेकर सड़क, सदन और न्यायालय तक लड़ती रहेगी। 43 सीट वाले CM नीतीश कुमार RSS की गोद में बैठ BJP को लाड़-प्यार करते रहे लेकिन हम पिछड़ों-दलितों-आदिवासियों के लिए अपनी वैचारिक लड़ाई आमने-सामने से लड़ते रहेंगे।
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राजद ने एक सितंबर को 65 प्रतिशत आरक्षण को संविधान की नौवीं सूची में शामिल करने तथा देश में जाति गणना की मांग पर राज्यभर में धरना प्रदर्शन किया था। पटना में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में धरना दिया गया था। तब जदयू के वरिष्ठ मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा था कि कोर्ट ने 65 प्रतिशत आरक्षण को रोक दिया है। नौवीं सूची में शामिल करने का सवाल खत्म हो जाता है। भाजपा-जदयू हाईकोर्ट के फैसले के बाद हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा, जबकि राजद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। वह सड़क से संसद तथा कोर्ट में भी 65 प्रतिशत आरक्षण को बहाल करने की कोशिश कर रहा है।
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