संघ चाहता है आडवाणी को पूर्ण विराम देना, खुद चुनाव लडऩे से इंकार करें,सोनी व रामलाल को जिम्मा सौंपा, बीमार आडवाणी की ओर से होगा बड़ा वार
देशपाल सिंह पंवार
पणजी। भाजपा दिल्ली मिशन की सारी रणनीति गोवा में तैयार कर रही है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कल से है लेकिन सब कुछ यहां नरेंद्र मोदीमय है। उन्हें चुनाव अभियान समिति की बागडोर के साथ और भी दायित्व दिए जाएंगे। शाम को संसदीय बोर्ड की बैठक में इस पर आम सहमति बनाने के प्रयास सफल नहीं हुए क्योंकि मोदी विरोधी खेमे के मुखिया एल के आडवाणी समेत कई बड़े नाम अचानक बीमार पड़ गए। किसी तरह सुषमा स्वराज को मनाने में राजनाथ सिंह कामयाब हो गए। आडवाणी के रुख से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में तो गुस्सा है ही साथ ही अब संघ ने भी भाजपा को साफ कह दिया कि आडवाणी को पूर्ण विराम देने का समय आ गया है। रामलाल और सुरेश सोनी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। आडवाणी समेत तमाम ऐसे चेहरों को दूर करने के लिए संघ ने भाजपा को कहा है कि वो 75 पार के नेताओं को अगले चुनाव से दूर रखे। इस पर फैसला कार्यकारिणी की बैठक में ही होना था लेकिन राजनाथ सिंह के कहने पर टल गया है। हां इस तरह की खबरें जरुर मिल रही हैं कि नौ जून को या तो सन्यास का ऐलान आडवाणी कर सकते हैं या फिर कोई बड़ा गेम खेल सकते हैं। इस गेम से जद यू को भी जोडक़र देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि आडवाणी जद यू के साथ जा सकते हैं। दिल्ली में आज शरद यादव और आडवाणी की मुलाकात ने इस तरह की खबरों को हवा दे दी है कि आडवाणी के इस कदम से मोदी समर्थक भाजपा को भी झटका लगेगा और नीतीश कुमार का भी कद बढ़ेगा। कुल मिलाकर यहां मोदी-आडवाणी के बीच कुर्सी की दौड़ अंतिम चरण में पहुंच गई है। आडवाणी समर्थक नेताओं ने जहां इस वरिष्ठ नेता के कदमों पर चलते हुए खुद को बीमार घोषित कर गोवा से दूरी बना ली है तो वहीं मोदी समर्थक पूरे उत्साह से अपने नेता के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं।
दरअसल पार्टी के लिए पहले किया गया एक ऐलान ही सिरदर्द बन गया है। उस ऐलान के तहत चुनाव अभियान समिति का मुखिया तय करने का जिम्मा संसदीय बोर्ड को करना होता है ना कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी को। इसी वजह से राजनाथ सिंह ने आज शाम संसदीय बोर्ड की बैठक इस उम्मीद के साथ बुलाई थी कि नरेंद्र मोदी के नाम पर किसी तरह सहमति बना ली जाए। पर ऐन वक्त पर आडवाणी का पेट खराब हो गया। बाकी कुछ और नेता उमा भारती, शत्रुघ्न सिन्हा, रविशंकर प्रसाद व वरुण गांधी भी इस बैठक से नदारद रहे। सुषमा के ना आने की भी चर्चाएं थी,पहले वह रूठी हुई थी और उन्हें मनाने का जिम्मा राजनाथ सिंह ने उठाया। मोदी दोपहर को ही भेज यह बैठक दोपहर 3 बजे शुरू होने थी, लेकिन सुषमा के न आने की वजह से बैठक डेढ़ घंटे देर से शुरू हुई। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के नाम पर आडवाणी पर दबाव बनाने के लिए सुषमा स्वराज ने यह रणनीति अपनाई। यहां पहुंचने के बावजूद सुषमा काफी वक्त तक अपने कमरे में ही बैठी रही थीं। लेकिन बाद में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के मनाने पर वह बैठक में शामिल होने पर तैयार हो गई। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी काफी देर तक आज राजनाथ सिंह बातचीत की।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी के बारे में और भी अहम फैसले होंगे। दिल्ली मार्च की इसे शुरुआत माना जा रहा है। पार्टी की सांसद और महिला मोरचा की नेता स्मृति ईरानी ने तो साफ कहा कि हमें मालूम है कि भारत क्या चाहता है। बीजेपी के कार्यकर्ता क्या चाहते हैं, लेकिन हमें यह नहीं मालूम है कि पार्टी का संसदीय बोर्ड क्या चाहता है? मैं इस बारे में न तो किसी खबर का खंडन करती हूं और न ही पुष्टि। आडवाणी के ओर से आज खुलकर बल्लेबाजी करने आए यूपी के फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ। योगी ने कहा कि कल बैठक में जो निर्णय लिया जाएगा, वही अंतिम होगा। बीजेपी में नेता का विवाद कभी नहीं रहा। बीजेपी और एनडीए के सर्वमान्य नेता आडवाणी जी ही हैं। उनसे बड़ा नेता कोई नहीं है। योगी ने कहा कि नरेंद्र मोदी लोकप्रिय नेता हैं। गुजरात को सुशासन दिया है। लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित किया है। स्वाभाविक रूप से नौजवानों में उन्हें लेकर उत्सुकता है लेकिन मोदी के भी नेता आडवाणी ही हैं। योगी यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि बीजेपी और एनडीए मिलकर सुशासन देने की बात होनी चाहिए। आडवाणी और मोदी की जोड़ी को अटल और आडवाणी की जगह लेनी चाहिए।
आडवाणी कैंप का ये रुख ना तो भाजपा नेताओं के गले उतर रहा है और ना ही संघ के। संघ आडवाणी से बेहद खफा है। संघ की अगर चली तो आडवाणी का पीएम बनने का सपना भी कभी पूरा नहीं होगा और ना ही वो अगला चुनाव लड़ पाएंगे। संघ चाहता है कि आडवाणी खुद ही सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लें और पार्टी में सलाहकार व अभिभावक की भूमिका का निर्वाह करें। नागपुर से निकलकर आ रही खबरों के मुताबिक संघ के शीर्ष पदाधिकारियों की महत्वपूर्ण बैठक दो दिन पहले ही हुई है। इसमें तय किया गया कि मोदी और आडवाणी के बीच खींचतान से होने वाला नुकसान तुरंत अगर टाला नहीं गया तो कांग्रेस फायदा उठा लेगी। लिहाजा संघ की मंशा है कि अब वक्त आ गया है कि भाजपा नेतृत्व को साफ संदेश दिया जाए। इस संदेश के तहत 75 पार के नेताओं को लोकसभा चुनाव से दूर रखने को कहा गया। अगर ऐसा होता है तो आडवाणी समेत कई खुद ही रेस से बाहर हो जाएंगे। संघ चाहता था कि ये प्रस्ताव राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ही लाया जाए लेकिन राजनाथ सिंह और खुद नरेंद्र मोदी इसके लिए संघ को मनाने में जुटे हैं। संघ ने ये भी साफ कर दिया है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ही आडवाणी खुद चुनाव ना लडऩे का ऐलान करें और जिस तरह अटल बिहारी वाजपेयी का नाम उन्होंने बढ़ाया था अब वो मोदी को आगे करें। सुरेश सोनी और रामलाल संघ की ओर से इस तरह के रास्ते निकालने में जुटे हैं। पर असली दिक्कत आडवाणी को लेकर है।
आज तबियत खराब होने की दलील पर वो दिल्ली में डेरा डाले रहे लेकिन उनसे मिलने शरद यादव के पहुंचने और दोनों में लंबी बातचीत से राजधानी के साथ-साथ यहां पणजी में भी भाजपा की राजनीति गरमाई रही। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक आडवाणी यहां कोई धमाका जरूर करेंगे। हो सकता है कि वो सन्यास का ऐलान कर दें। या फिर भाजपा छोडक़र जद यू के साथ खड़े होने का धमाका भी कर सकते हैं। इस नेता के मुताबिक जबसे मोदी और नीतीश आमने-सामने आए हैं तबसे आडवाणी शरद यादव के साथ-साथ नीतीश के ज्यादा नजदीक हो गए हैं। ये नजदीकी भारत की राजनीति में नया गुल खिला सकती है इससे भाजपा के कई नेता इंकार नहीं कर रहे हैं। पर साथ ही कुछ नेता ये भी कहते हैं कि अल्पसंख्यक वोट के लिए मोदी को दूर रखने की कोशिश करने वाले नीतीश या फिर शरद यादव आडवाणी को कैसे साथ ले सकते हैं? अगर एक को गुजरात दंगों के लिए वो अछूत मानते हैं तो फिर दूसरे को अयोध्या ढांचे को लेकर दोस्ती कैसे कर सकते हैं?