बीस साल पहले बिहार पुलिस मुख्यालय ने दारोगा बहाली के लिए, 75 लाख रुपये के पोस्टल ऑर्डर अभ्यर्थियों से प्राप्त किये थे आखिर कहां गये ये रुपये?
विनायक विजेता
बिहार का यह दिलचस्प मामला 1994 में हुई दारोगा बहाली से संबंधित है। उस वक्त विजय प्रकाश जैन राज्य के डीजीपी थे जबकि आईजी (एडमीन) के पद पर सरदार बलजीत सिंह व डीआईजी हेडक्वार्टर के पद पर रामेश्वर उरांव पदस्थापित थे।
इस बहाली में दारोगा अभ्यर्थियों से शुल्क के रुप में 75 लाख रुपए मुल्य के पोस्टल आर्डर मिले थे जिनका नकदीकरण कराया जाना था। दारोगा बहाली के दौरान यह निर्णय लिया गया था कि तत्काल बहाली में होने वाला खर्च की रकम पुलिस के तीन सहायता कोष में से उधार स्वरूप ली जाए और पोस्टल आर्डरों के नकदीकरण के बाद उसकी भारपायी कर दी जाए।
इस आधार पर पुलिस सहायता कोष से लाखों रुपए बहाली के नाम पर निकाले तो लिए गए पर फिर उस कोष में पैसा जमा नहीं किया गया। दरोगा बहाली में मिले 75 लाख के पोस्टल आर्डर का न तो नकदीकरण ही कराया गया और ही इसका पता चल रहा है कि वह पोस्टल आर्डर हैं कहां। उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया।
1994 से 1995 तक चले दारोगा बहाली की प्रक्रिया के दौरान एके चौधरी भी डीजीपी बने पर उन्होंने भी इसकी कोई सुध नहीं ली। 1994 से लेकर अबतक राज्य में कई डीजीपी आए और गए पर सब इस गंभीर मामले से पल्ला झाड़ते रहे।
गौरतलब है किसी भी पोस्टल आर्डर के नकदीकरण की अवधि बस एक ही वर्ष है उसके बाद वह कोरा कागज के समान हो जाता है। अगर पुलिस मुख्यालय ने उसी वक्त सुध ले इन पोस्टल आर्डरों का नकदीकरण करा उसे फिक्सड कर देता आज वह राशि तीन करोड़ की हो जाती पर उन पोस्टल आर्डरों का कोई पता ही नहीं चला।
इस संदर्भ में जब मैंने दिल्ली में रह रहें तत्कालीन आईजी सरदार बलजीत सिंह से बात की तो उन्होंने कहा कि पोस्टल आर्डर मामले से मेरा कोई लेना-देना नहीं था मेरी जिम्मेवारी सिर्फ परीक्षा के संचालन की थी। उन्होंने बताया कि पोस्टल आर्डर और अन्य खर्च के मामले तब तत्कालीन डीआईजी, हेडक्वार्टर रामेश्वर उरांव देखा करते थे और सब उन्हीं के जिम्मे था।
बहरहाल पुलिस मुख्यालय जैसे सुरक्षित क्षेत्र से पोस्टल आर्डरों का गायब होना और इसपर लगातार बीस वर्षों से अधिकारियों की चुप्पी किसी बड़ी साजिश का संकेत करती हैं।