बिहार के विभिन्न विभागों के टॉप नौकरशाह पिछले 9 वर्षों से खर्च किये गये 14 हजार करोड़ रुपये का हिसाब नहीं दिया है. हालांकि इस बारे में विभागों को कई बार रिमाइंडर भेजा गया.
भास्कर न्यूज
मामला पहली बार तब खुला, जब महालेखाकार ने कुछ विभागों द्वारा हिसाब देने के नाम पर जैसे-तैसे भेजे गए ब्योरे को गलतियां सुधारने की सलाह के साथ वापस लौटा दिया। इसी के बाद मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने अफसरों की सुस्ती तोड़ने का जिम्मा अपने हाथों में ले लिया। उन्होंने शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, कृषि विभाग, नगर विकास एवं आवास विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, समाज कल्याण विभाग और पंचायती राज विभाग समेत सभी विभागों के प्रधान सचिव और सचिवों को उनके मातहतों से लंबे समय से अटके उपयोगिता प्रमाणपत्र जल्द से जल्द जमा कराने के लिए कहा है। सरकारी कर्मियों की यह आदत विकास योजनाओं पर भारी पड़ सकती है, क्योंकि केंद्र सरकार जब भी चाहे हिसाब खर्च का नहीं मिलने की बात कर बिहार को दी जाने वाली सहायता में कटौती कर दे।
क्या है प्रावधान
सरकारी संस्थानों और उपक्रमों द्वारा उपयोगिता प्रमाणपत्र, वार्षिक एकाउंट और प्रोफार्मा एकाउंट का समय पर समर्पण करना प्रभावकारी और उत्तम वित्तीय प्रबंधन की अनिवार्य शर्त होती है। संबंधित संस्था को खर्च के छह माह के भीतर हर हाल में उपयोगिता प्रमाणपत्र देना पड़ता है।
दूसरी तरफ अब ग्रामीणविकास विभाग ने एक बार फिर सभी उप विकास आयुक्तों से स्वयं सहायता समूहों के लिए आवंटित राशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र भेजने का निर्देश दिया है। विभाग ने अपने आदेश में कहा है कि वित्तीय वर्ष 2003-04 से 2012-13 के बीच जिलों को स्वयं सहायता योजना के तहत आवंटित की गई राशि का उपयोगित प्रमाणपत्र अभी तक नहीं मिला है, जिसके कारण राशि का समायोजन नहीं हो सका है। वित्त विभाग ने उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं देने पर कई बार आपत्ति दर्ज कराई है। विभाग ने एक बार फिर सभी जिलों को रिमाइंडर भेजकर संबंधित उप विकास आयुक्तों को जल्द से जल्द उपयोगिता प्रमाणपत्र उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। कहा- ऐसा नहीं करने पर योजनाओं पर असर पड़ सकता है।
दैनिक भास्कर से साभार