9 फरवरी, 2015 को नीतीश कुमार ने जदयू विधायक दल की बैठक में कहा था कि सुशासन उनका यूएसपी है। उन्होंने कहा था कि वे अपने यूएसपी के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं। जदयू विधायक दल की वह बैठक जीतनराम मांझी को विधायक दल के नेता पद से हटाने और नीतीश कुमार को नया नेता चुनने के लिए थी।
2014 को लोकसभा चुनाव परिणाम
सुशासन के नाम पर मिला था सिर्फ 9.52 फीसदी वोट
वीरेंद्र यादव
जून 2013 में भाजपा मंत्रियों की बर्खास्तगी के बाद नीतीश कुमार यूएसपी और नरेंद्र मोदी विरोधी छवि गढ़ने का प्रयास कर रहे थे। भाजपा वाले भी विकास गाथा से ‘आह्लादित’ थे, जिसका लाभ नीतीश कुमार को ही मिल रहा था। विशेष राज्य का दर्जा, सुशासन और विकास की आंधी के दावों के साथ नीतीश कुमार 2014 के लोकसभा चुनाव में उतरे थे। सीपीआई के दो उम्मीदवार समेत सभी 40 सीटों पर नीतीश ने उम्मीदवार दिये थे। चुनाव प्रचार में नीतीश सुशासन और विकास का राग अलाप रहे थे और अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि सुशासन और विकास को बता रहे थे। अतिपिछड़ा वोटर को अपनी थाती समझते थे। लेकिन चुनाव में कुल वोटरों का मात्र 9.52 फीसदी मत नीतीश कुमार को मिला, जबकि शेष 90 फीसदी वोटरों ने उनके विकास और सुशासन के दावों को खारिज कर दिया था।
प्रधानमंत्री के अतिपिछड़ा उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नाम पर एनडीए को मात्र 21.81 फीसदी वोट मिला। उधर जदयू और भाजपा के आरोप झेल रहे लालू यादव व यूपीए को 16.74 फीसदी वोटरों को मत मिला। इस चुनाव में कुल 55.49 फीसदी मतदान हुआ था। 2014 का लोकसभा चुनाव परिणाम बताता है कि नरेंद्र मोदी की आंधी में भी कुल मतदाताओं का करीब 22 फीसदी वोट ही भाजपा और उसके सहयोगी दलों को नसीब हुआ। सुशासन, विशेष राज्य का दर्जा और यूएसपी के रथ पर सवार होकर भी नीतीश कुमार वोट के शेयर में दहाई अंक तक नहीं पहुंच पाये।
वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में जदयू नीतीश कुमार के यूएसपी, सुशासन और छवि के नाम पर ‘बाजार’ गरम बनाए रखने की कोशिश करता है। लेकिन आकड़ों की सच्चाई बताता है कि इस छवि को वोट में तब्दील करने में नीतीश कुमार विफल रहे हैं। दरअसल यही बेचैनी और विवशता नीतीश कुमार को लालू यादव के साथ हाथ मिलाने और खड़े होने को विवश किया था। लालू यादव और नीतीश कुमार के एक साथ आने के बाद भाजपा विरोधी वोटों का बिखराव थम गया और इसका लाभ महागठबंधन को मिला था। राजनीतिक इस यथार्थ को महागठबंधन के सभी दलों को समझना होगा।