नीतीश सरकार ने आनन-फानन में EBC आयोग बनाया। हालत यह है कि अति पिछड़ों की कुल आबादी में 40 फीसदी मुस्लिम हैं, पर उनका कोई प्रतिनिधि नहीं।
इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम
नगर निकाय चुनाव पर पटना हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य सरकार अतिपिछड़ों को आरक्षण देने के पहले ईबीसी आयोग का गठन करे। राज्य सरकार ने आनन-फानन में अतिपिछड़ा आयोग का गठन कर दिया। आयोग गठित होने के बाद महत्वपूर्ण सवाल उठा है। बिहार में अतिपिछड़ों की कुल आबादी में मुस्लिमों की आबादी 40 प्रतिशत है। इतनी बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला आयोग में कोई भी सदस्य नहीं है। साफ है आयोग समावेशी नहीं है।
राज्य सरकार ने जो विशेष आयोग बनाया है, उसके सदस्यों से कोई पूछे कि पांच मुस्लिम अतिपिछड़ों के नाम, पेशा और सामाजिक स्थिति बताएं, तो कोई नहीं बता पाएगा। जाहिर है, 40 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं होने से इस आबादी के साथ नाइंसाफी होने की पूरी आशंका है।
राज्य सरकार ने अतिपिछड़ों के पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए जो आयोग आयोग बनाया, वह पहले से गठित अतिपिछड़ा आयोग ही है। उसे ही डेडिकेटेड आयोग घोषित कर दिया गया। इसके अध्यक्ष है जदयू के डॉ. नवीन कुमार आर्य। अन्य सदस्य हैं मुंगेर जिला जदयू के पूर्व अध्यक्ष ज्ञान चंद्र पटेल, जदयू के ही अरविंद निषाद, राजद के कटिहार जिला पूर्व अध्यक्ष तारकेश्वर ठाकुर, सिंहवारा के पूर्व प्रखंड अध्यक्ष विनोद भगत। ये पांच सदस्य हैं, जिनमें तीन जदयू के और दो राजद के हैं। गौर करने वाली बात है कि आयोग को शोधपूर्वक काम करना है, लेकिन एक भी एक्सपर्ट, बुद्धिजीवी को शामिल नहीं किया गया है।
ईबीसी आयोग में 40 फीसदी आबादी मुसलिम ईबीसी समाज की होने के बावजूद उससे एक भी सदस्य नहीं रखे जाने से इस समुदाय में निराशा है। कई लोगों ने कहा कि आयोग के सदस्यों की सूची देख कर वे चकित दुखी हैं। लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है। अच्छा हो, इस आयोग में मुस्लिम अतिपिछड़ों का प्रतिनिधित्व देने के लिए राज्य सरकार जल्द कमद उठाए।
मुस्लिमों की चुनिंदा जातियों को छोड़कर उनकी बड़ी आबादी अतिपिछड़े समुदाय में ही आती है। इसीलिए यह प्रतिशत 40 तक पहुंच जाता है। इतनी बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं होना आयोग की भूमिका पर ही सवाल खड़ा कर देता है।
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