अब आंदोलन का केंद्र बना यूपी, योगी का किला दरकाएंगे किसान
पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन हरियाणा में जड़ें जमा चुका है। अब आंदोलन का नया केंद्र पश्चिम यूपी बन रहा है। इससे भाजपा नेतृत्व परेशान।
कुमार अनिल
देश के चर्चित वकील प्रशांत भूषण ने आज कहा कि प्रधानमंत्री पंजाब के किसानों के जज्बे को समझने में विफल रहे, पर लगता है वे और यूपी की योगी सरकार पश्चिम यूपी के किसानों को भी समझने में विफल रही। बड़ौत में धरना दे रहे किसानों पर पुलिस ने लाठी चार्ज करके धरनास्थल से हटा दिया।
लेकिन परिणाम क्या निकला, आज दोपहर बागपत में हजारों किसानों की महापंचायत हुई। किसानों ने मोदी-योगी सरकार के खिलाफ आंदोलन तेज करने की घोषणा कर दी।
26 जनवरी को साजिश के तहत किसान आंदोलन को बदनाम किया गया। उसके बाद गोदी मीडिया ने आंदोलन को देशद्रोही बताना शुरू किया। सिंघु बाॉर्डर पर पथराव करनेवाले कौन थे, देश यह भी जान चुका है, लेकिन बाजी पलट दी गाजीपुर बाॉर्डर ने। गाजीपुर बाॉर्डर पर रात में पुलिस पहुंच गई। जबरन रास्ता खाली कराने की कोशिश की गई। किसानों का आरोप है कि पुलिस चाहती थी कि राकेश टिकैत को गिरफ्तार कर लिया जाए और बाकी किसानों को लाठी के सहारे हटा दिया जाए। इसके बाद टिकैत रो पड़े और फिर पूरा पश्चिम उत्तर प्रदेश जैसे तूफान में बदल गया। रात में ही हजारों किसान गाजीपुर को लिए चल पड़े। और आज बागपत में हुई महापंचायत ने आर-पार की लड़ाई का एलान कर दिया।
पश्चिम उत्तर प्रदेश का क्या है महत्व
यह पश्चिम उत्तर प्रदेश ही है, जहां मुजफ्फरनगर दंगे के बाद विधानसभा चुनाव में इस पूरे क्षेत्र में भाजपा की आंधी चल पड़ी थी। माना गया था कि भाजपा ने जाट-मुस्लिम-दलित एकता को तोड़ दिया। इसे कई राजनीतिज्ञों ने भाजपा की प्रयोगशाला तक करार दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पुलवामा की घटना हुई। पश्चिम उत्तर प्रदेश में फिर भाजपा की आंधी चली। लेकिन पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन अब उसी पश्चिम उत्तर प्रदेश में रंग दिखा रहा है।
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स्वाभाविक है, अब भाजपा के लिए किसान आंदोलन नई परेशानी खड़ी कर सकता है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, आगरा और अलीगढ़ मंडल आते हैं। यहां 15 जिले हैं। लगभग 80 विधानसभा सीटें हैं। आज जिस तरह यहां के जाट किसान भाजपा के विरोध में बोल रहे हैं, वह नए राजनीतिक समीकरण को जन्म दे सकती है। अगर फिर से जाट, मुस्लिम और दलित एकता बन गई, तो भाजपा की दुबारा सत्ता में आने की राह कठिन हो जाएगी।
ये आंदोलन और भी आगे बढ़ा, तो बाजी पलट सकती है। राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस के नेता लगातार किसानों के पक्ष में बोल रहे हैं।
प्रधानमंत्री और मेघालय के राज्यपाल ने क्या कहा
दो बातों पर ध्यान देना जरूरी है। मेघालय के राज्यपाल सतपाल मलिक, जो भाजपा के नेता रह चुके हैं, ने कहा कि आंदोलन इस मामले में सफल हो गया है किसानों के आंदोलन और उनके मुद्दे से पूरा देश वाकिफ हो गया है। केंद्र सरकार को जल्द से जल्द किसानों से वार्ता करनी चाहिए। उधर, पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन पर कुछ कहा है। उन्होंने कहा कि सरकार अब भी किसानों से वार्ता करने को तैयार है। सरकार डेढ़ साल के लिए तीनों कानून को स्थगित करने के अपने स्टैंड पर भी कायम है।
देखना है अब भी भाजपा सरकार किसानों पर दमन का रास्ता अख्तियार करती है या तीनों कृषि कानून वापस लेती है।