ठीक चार महीने पहले नीतीश कुमार ने तेज्सवी यादव को सत्ता से बेदखल कर दिया था लेकिन तेज्सवी ने इस कठिन समय को अवसर में बदलने की भरपूर कोशिश की है. वह नीतीश को अपनी पिच पर खीच लाने में कितने सफल हुए हैं- एक विश्लेषण.
इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम
पिछले दिनों नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के बारे में एक बात कही थी. उन्होंने कहा था- ‘वह बच्चा है. उसे मैंने मंत्री बनाया था तो कुछ लोगों ने आलोचना की थी. फिर खिसका दिया तो कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगा’. नीतीश का यह कथन एक प्रतिक्रिया के रूप में था. पर उनके इस बयान का विस्तार इससे कुछ आगे तक है. वह ये कि नीतीश ने( हालांकि राजद ने उन्हें सीएम बनाया था) तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री बनाया था. लेकिन उपमुख्यमंत्री के पद से तेजस्वी को नीतीश द्वारा खिसका दिये जाने के बाद वह नेता बन गये. सदन में विपक्ष का नेता. और सदन का नेता होना, यानी मुख्यमंत्री के समानांतर एक वैक्लपिक नेता का होना. तेजस्वी अकसर इस बात को दुनिया के समाने रखते भी हैं. और अपने बयानों के तीर इसी अंदाज में छोड़ते हुए नीतीश पर हमला भी करते हैं. वह कहते हैं कि 28 वर्ष के एक युवा नेता से नीतीश डरते हैं. नीतीश द्वारा राजद गठबंधन तोड़ कर भाजपा के साथ सरकार गठन के अभी बमुश्किल चार महीने होने को हैं. पर इन चार महीनों के अखबारी कतरनों और सोशल मीडिया के पेजों को निहारें तो साफ हो जाता हे कि शायद ही कोई ऐसा दिन बीता हो जब तेजस्वी ने नीतीश पर धारदार हमले न किये हों. तेजस्वी के हमले में तीव्र आक्रामकता होती है. चूभने वाले शब्द होते हैं. और साथ ही नीतीश के लिए कठिन प्रश्नों की बौछार भी होती है.
तेजस्वी के हमलों पर अमूमन नीतीश खामोश होते हैं.उनके आक्रामकता भरे बयानों को नजरअंदाज करते हैं.लेकिन जब पत्रकारों की टोली इस पर कुछ पूछती है तो वह उबल पड़ते हैं और कहते हैं कि पिता की विरासत तो आखिर बेटे को ही मिलती है. नीतीश जब ‘विरासत’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो उनका इशारा राजनीति में गिरती बयानबाजी के स्तर की तरफ होता है. दर असल तेजस्वी नीतीश के लिए छली, कपटी, प्रपंची,कुचक्री, षड्यंत्रकारी और अहंकारी जैसे शब्दों को प्रयोग करते रहे हैं. उन्हें ललकारते हैं. पर नीतीश खुद उनकी ललकार पर कुछ भी नहीं कहते. नीतीश की राजनैतिक शैली को करीब से जानने वालों को पता है कि वह विपक्ष के हमलों पर खुद कुछ बोलने के बजाये अपने प्रवक्ताओं को भिड़ा देते हैं.
बीलो द बेल्ट पहुंची राजनीति
और तब उनके प्रवक्ताओं की टोली बदले में हमले का जवाब देती है. नीतीश की पार्टी के ये प्रवक्ता तब भी ऐसे ही हमला करते थे जब, सुशील मोदी विपक्ष के नेता थे. और अब यही काम उनके प्रवक्ता तेजस्वी के खिलाफ कर रहे हैं. लिहाजा जदयू के प्रवक्ता तेजस्वी पर आक्रमण की झड़ी लगाने से खुद को नहीं रोक पाते. दोनों तरफ से आक्रमण और प्रति आक्रमण का सिलसिला जब चल निकलता है तो बयानबाजियों का स्तर काफी नीचे गिर जाता है. पिछले दिनों जदयू के तीन प्रव्कताओं ने संजय सिंह के नेतृत्व में एक प्रेस कांफ्रेंस की. इसमें उन्होंने तेजस्वी पर हमला बोला. साथ ही एक महिला के साथ उनकी तस्वीर पत्रकारों को दिखाई. हालांकि यह तस्वीर 2012 से सोशल मीडिया पर तैर रही है. इस तस्वीर में तेजस्वी के साथ एक महिला है. यह तस्वीर आपत्तिजनक तो नहीं है पर जदयू के प्रवक्ताओं ने यह दिखा कर तेजस्वी की छवि पर प्रश्न उठाने की कोशिश जरूर की. स्वाभाविक तौर पर तेजस्वी इस पर आक्रामक हो गये. और जवाब में नीतीश पर निशाना साध. उन्होंने सवाल किया कि वह बतायें कि रेल मंत्री रहते उन्होंने ‘अर्चना’ एक्सप्रेस नाम से रेलगाड़ी किसके नाम पर शुरू की. जदयू प्रवक्ताओं ने तेजस्वी पर निजी हमला बोला तो बदले में ऐसे ही हमले तेज्सवी ने भी किये.
पर्दे के पीछे
राजनीतिक पर्येक्षकों का कहना है कि राजनीतिक बयानबाजियों के पतन की मिसाल है. निरपेक्ष लोगों ने ऐसी बयानबाजियों पर नाराजगी जतायी. ऐसे लोगों ने कहा कि नेताओं को ऐसी बयानबाजियों से बचना चाहिए. पर इस पर नीतीश कुमार ने कुछ भी नहीं कहा. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपने प्रवक्ताओं को ऐसे बयान न देने की बात कभी नहीं कही. ऐसे में कुछ लोगों ने कहा कि नीतीश के इशारों पर ही उनके प्रवक्ता ऐसे बयान देते हैं.
लोकतंत्र में अपने विरोधियों की तथ्यों पर आधारित आलोचना करना, हमला करना और उन्हें जनता के समक्ष घेरना स्वस्थ राजनीतिक परम्परा मानी जाती है. इससे लोकतंत्र मजबूत होता है और सरकार व विपक्ष दोनों को जनता के प्रति जिम्मेदार बने रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है. ऐसे में विपक्ष के नेता की हैसियत से तेजस्वी अगर नीतीश पर तथ्यों पर आधारित हमला करते हैं तो यह स्वाभाविक राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा है. ऐसा करना भी चाहिए. पर तेजस्वी जैसे शब्दों को प्रयोग करते हैं, जिसका जिक्र ऊपर की पंक्तियों में किया गया है, भले ही वे शब्द असंसदीय न हों पर तीखे जरूर है. इसके लिए उनकी आलोचना भी हुई है. पर विपक्ष के नेता के बतौर उनके तथ्यवार आक्रमण को इग्नोर भी नहीं किया जा सकता. उन्होंने पिछले तीन महीनों में उजागर हुए घोटालों पर राज्य सरकार को घेरा है. उन्होंने हजार करोड़ से ज्यादा के सृजन घोटाले पर नीतीश कुमार पर हमला किया. इसी तरह ट्वायलेट घोटाल, महादलित मिशन घोटाला आदि मुद्दे पर जोरदार हमले करके नीतीश कुमार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति को सवालों के घेरे में खड़ा किया. ऐसे बयानों से तेजस्वी ने अपने समर्थकों में एक आक्रामक नेता की छवि विकसित करने की कोशिश की.
नीतीश की मजबूरी
इन मामलों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वही नुकसान हुआ, जो सत्ता में रहने वाले नेताओं को उठाना पड़ता है. यह जगजाहिर है कि सरकार का कोई भी मुखिया पूरे तंत्र को खुद से नियंत्रित नहीं रख सकता. लोकतंत्र में सभी संस्थाओं की अपनी भूमिका है. शासन-प्रशासन के तमाम स्तर पर निर्णय लिये जाने की व्यवस्था है. ऐसे में भ्रष्टाचार की तमाम संभावनायें रहती हैं. पर जहां तक राजनीतिक नेतृत्व की बात है, तो इसकी अंतिम जिम्मेदारी सरकार के मुखिया पर ही जाती है. नीतीश कुमार खुद ही इस बात को मानते और स्वीकार भी करते हैं. तभी तो वह कहते हैं कि सत्ता में रह कर बहुत कुछ सुनना पड़ता है. इस दृष्टि से देखें तो नीतीश कुमार ने सृजन घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी. महादलित मिशन घोटाले में लिप्त लोगों पर कार्रवाई चल रही है. इसी तरह शौचालय घोटाले से जुड़े लोग भी कानून के शिकंजे में आ रहे हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि विपक्ष इन मुद्दों पर खामोश हो जाये और सिर्फ तमाशाई बन कर देखता रहे. तेजस्वी युवा हैं. उन्हें लम्बी राजनीति करनी है. वह लम्बी लड़ाई के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं. दो साल के अपने संसदीय जीवन में उन्होंने सत्ता के अंदर और सत्ता के बाहर यानी दो जगहों पर रहने का अनुभव प्राप्त कर लिया है. अगले डेढ़ साल में उन्हें चुनावी मैदान में जाना है. वह उसी की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि अभी तक उनके सर पर लालू प्रसाद का साया है. उनके पीछे उनकी शक्ति है. ऐसे में यह कहना फिलहाल कठिन है कि उन्होंने अपने दल के नेता के रूप में खुद स्थापित कर लिया है. पर यह तो निश्चित है कि लालू भी और खुद तेजस्वी भी इस प्रयास में हैं कि वह राजद की दूसरी पीढ़ी के नेतृत्व के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं. इसमें वह कितने सफल या कितने असफल होते हैं यह भविष्य तय करेगा.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक ने बर्मिंघम युनिवर्सिटी इंग्लैंड से शिक्षा प्राप्त की.भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता की पढ़ाई की.फोर्ड फाउंडेशन के अंतरराष्ट्रीय फेलो रहे. सोशल जस्टिस के मुद्दों पर वाशिंगटन व ब्रुसल्स समेत अनेक अंतराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बातें रखीं. बीबीसी के लिए लंदन और बिहार से सेवायें देने के अलावह वह तहलका समेत अनेक मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे.अभी नौकरशाही डॉट कॉम के सम्पादक हैं.[/author]