पासवान की अनुपस्थिति में जूनियर पासवान की सियासत दांव पर
शाहबाज़ की रिपोर्ट
केंद्रीय मंत्री एवं लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके बेटे एवं पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान (Chirag Paswan) की सियासत दांव पर है. चिराग को भरोसा है कि बिहार में सियासी फ़िज़ा बदलने वाली है जिसमे नए नेतृत्व को रिस्क लेकर जगह बनानी होगी।
रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) जिनका शुमार बिहार के बड़े दलित नेताओं में होता था. रामविलास पासवान जिन्हें देश की राजनीति में ‘राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक’ के तौर पर देखा जाता था जो राजनीति की दिशा पहले से ही भांप लेते थे . जिसके कारण वह लगभग हर केंद्रीय सरकार में मंत्री रहे. वह बिहार के उन नेताओं में से थे जिन्होंने 2014 में नरेंद्र मोदी द्वारा बहुमत सरकार बनाये जाने की सम्भावना को पढ़ लिया था. .
चिराग पासवान के सामने स्थिति यह है कि उनके पिता रामविलास पासवान द्वारा साल 2000 में स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) का जनाधार लगातार गिर रहा है. अब चिराग को नयी राजनीतिक ज़मीन तलाशने के साथ-साथ वोट बैंक को भी नए सिरे से गढ़ने की ज़रुरत है. जहाँ फरवरी 2005 में हुए बिहार विधान सभा चुनाव में पार्टी ने 29 सीटें जीती थी, वही पार्टी नवंबर 2005 में 10 सीटें जीतती है और 2020 की स्थिति यह है कि बिहार में लोजपा के पास सिर्फ 2 विधायक है. अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो पिछले 15 सालों में लोजपा का वोट प्रतिशत गिरकर 3.5 रह गया है जो 2005 में 12.6 % था.
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बिहार में पासवान वोट 5 % के करीब है वही महादलित वोट 16 % है. रामविलास पासवान ने देहांत से पहले उनके बेटे चिराग पासवान को अकेले चुनाव लड़ने के लिए कहा था जिसके कारण लोक जनशक्ति पार्टी बिहार चुनाव में NDA से अलग होकर अकेले बिहार की 143 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था
बिहार की सियासत पर पासवान के निधन का क्या असर होगा ?
रामविलास पासवान के निधन से बिहार में शोक की लहर है. ऐसे में चिराग पासवान को कुछ फैक्टर्स का फायदा ज़रूर मिल सकता है.
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सहानुभूति वोट
बिहार के 5 जिलों में दलित वोटर एक बड़े फैक्टर के रूप में काम करते हैं। पासवान के निधन से एक सहानुभूति की लहर है। जिसका फायदा राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी को मिल सकता है। इसकी एक बानगी यह भी है कि चिराग ने जब अपने पिता के देहांत की सुचना सोशल मीडिया पर दी तो उन्हें जनता की सहानुभूति भारी संख्या में लाइक के ज़रिये मिली। अब यह सहानुभूति दलित वर्ग द्वारा वोटों में भी तब्दील हो सकती है ।
नीतीश के खिलाफ वोट बैंक
लोजपा ने NDA गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ने का रिस्क भरा फैसला किया। पार्टी ने बिहार चुनाव के प्रथम चरण के लिए 42 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है जो नीतीश कुमार की जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। लोजपा की रणनीति मोदी के समर्थन में और नीतीश के खिलाफ वोटों को एकत्रित करना है. लोजपा ने खुद भाजपा को अवगत कराया था कि राज्य में नीतीश के खिलाफ नाराज़गी है. लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान पहले से ही नीतीश कुमार पर स्वच्छता, सात निश्चय और गवर्नेंस को लेकर हमले करते आये है. इसको देखते जहाँ जहाँ जदयू-लोजपा आमने सामने है वह एंटी-नीतीश वोट लोजपा की तरफ जाने की सम्भावना है.
हाथरस काण्ड का असर
हाल ही में उत्तर प्रदेश के हाथरस में युवती के साथ कथित गैंगरेप और हत्या मामले ने पुरे देश में तूल पकड़ा। दलित वोटर अब अपनी सुरक्षा और भविष्य को लेकर चिंतित है. ऐसे में लोजपा ने NDA से अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया। ऐसे में दलित वर्ग भाजपा से छिटकता है तो लोजपा की तरफ देख सकता है. ज़ाहिर है अगर ऐसा होता है तो लोजपा को इसका भी फायदा मिल सकता है.
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बिहार चुनाव में दलित वोटर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. मुख्यमंत्री एवं जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने भी दलित वोटरों के लिए घोषणाएं की हैं वही उनके साथ जीतन राम मांझी भी है. चूँकि लोजपा जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ रही है इसलिए उसे चुनाव से पहले एंटी-नीतीश वोट से फायदा मिल सकता है वही चुनाव के बाद भाजपा के सहयोगी होने का फायदा तो मिलेगा ही. इसलिए उपयुक्त बिंदुओं को देखते हुए यह सम्भावना जताई जा रही है कि रामविलास पासवान के निधन से लोजपा का वोट प्रतिशत बढ़ सकता है.