कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में अभी तक एनडीए के दो घटक दलों ने विरोध जता कर अलग हुए हैं लेकिन अब पहली बार भाजपा के एक विधायक भी विरोध में आ गये हैं.कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में अभी तक एनडीए के दो घटक दलों ने विरोध जता कर अलग हुए हैं लेकिन अब पहली बार भाजपा के एक विधायक भी विरोध में आ गये हैं.

कृषि कानून के खिलाफ अब BJP विधायक ने खोला मोर्चा

मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में अभी तक एनडीए के दो घटक दलों ने विरोध जता कर अलग हुए हैं लेकिन अब पहली बार भाजपा के एक विधायक भी विरोध में आ गये हैं.

यह मामला केरल विधान सभा का है. केरल विधान सभा ने आज यानी गुरुवार को सर्वसम्मति से

केंद्र के तीनों विवादित कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।

इस प्रस्ताव की खास बात यह रही कि प्रस्ताव को एकमात्र भाजपा विधायक ओलांचेरी राजगोपाल का भी समर्थन मिला।

हिंदुस्तान टाइम्स में रमेश बाबू की रिपोर्ट में बताया गया है कि जब प्रस्ताव पास किया जा रहा था, तब इकलौते भाजपा विधायक राजगोपाल नेअपनी सहमति प्रदान की। ओ राजगोपाल ने प्रस्ताव में शामिल कुछ संदर्भों पर आपत्ति दर्ज की मगर विरोध नहीं किया।

राजगोपाल अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में रेल राज्य मंत्री भी रह चुके हैं.
सदन के बाहर राजगोपाल ने कहा, ‘सदन में आम सहमति थी, इसलिए मैंने प्रस्ताव पर आपत्ति नहीं जताई। यह लोकतांत्रिक भावना है।’ केरल विधानसभा का यह घटनाक्रम भारतीय जनता पार्टी के लिए एक फजीहत के रूप में सामने आया है, क्योंकि भाजपा इस कानून को किसानों के हित में मानती है। भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष के. सुरेन्द्रन ने कहा कि वह इस बात की जांच करेंगे कि राजगोपालन ने विधानसभा में क्या कहा। सुरेंद्रन ने यह भी कहा कि उन्हें नहीं लगता कि राजगोपालन जैसे वरिष्ठ नेता इसके विपरीत विचार रखेंगे।

आप को याद दिला दें कि अब तक भाजपा के दो गठबंधन सहयोगियों ने इस कानून को काला कानून करार दे कर उसका साथ छो़ड़ चुके हैं. सबसे पहले अकाली दल ने संसद में बिल पास होने के समय ही खुद को एनडीए से अलग कर लिया था. उसके बाद पिछले ही हफ्ते एनडीए की सहयोगी राजस्थान की आरएलपी ने भी खुद को एनडीए से अलग हो कर किसानों के पक्ष में आंदोलन में कूद गयी है.

इस ताजा घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी को भारी फजीहत उठानी पड़ेगी क्योंकि जो भाजपा इन कानूनों को किसानों के हित में बताती है, उसी का विधायक इस कानून के खिलाफ खड़ा हो गया है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानून अध्यादेश द्वारा पारिरत किया. इस पर संसद में बहस नहीं होने दी गयी और इस कानून को अडाणी और अम्बानी की हितपूर्ति का कानून बताया जा रहा है. इन कानूनों के खिलाफ देश भर में आंदोलन चल रहा है और अब तक केंद्र ने पांच दौर की वार्ता कर ली है लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला है.


By Editor


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