बंगाल में कहां है Owaisi की नजर, क्या है रणनीति?
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी( Asaduddin Owaisi) बंगाल में सधी हुई चाल चल रहे हैं. जिससे ममता बनर्जी ऊहापोह में हैं.
राज्य में विधानसभा चुनावों के लिए तमाम राजनीतिक दल कमर कस रहे हैं. उधर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी( Asaduddin Owaisi) अपनी पार्टी के विस्तार के लिए अनेक पहुलुओं पर काम कर रहे हैं. उनका पहला निशाना तृणमूल कांग्रेस से नाराज नेताओं को अपने पाले में करने का है. तो दूसरी तरफ बंगाल के मुस्लिम समाज पर प्रभाव डालने वाले मजहबी रहनुमाओं पर भी वह डोरे डाल रहे हैं.
इसी क्रम में ओवैसी ने हुगली जिले के प्रसिद्ध फुरफुरा शरीफ के अमीर सिद्दीकी परिवार के पीरजादा अब्बासुद्दीन सिद्दीकी के साथ ओवेसी की मुलाकात भी हो चुकी है. अब्बासुद्दीन सिद्दीकी ममता सरकार के खिलाफ बयान भी देने लगे हैं. समझा जाता है कि सिद्दीकी परिवार से उनकी डील पक्की भी हो चुकी है.
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में, बिहार से करीब दोगुनी आबादी मुसलमानों की है. बिहार में मुसलमानों की आबादी कोई 17 प्रतिशत है जबकि पश्चिम बंगाल में 31 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है. बिहार में 2020 विधान सभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने अपनी उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन करते हुए पांच सीटों पर जीत हासिल की थी. बिहार की जीत से स्वाभाविक तौर पर ओवैसी उत्साह में हैं. उनके उत्साह की एक और बड़ी वजह पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटरों की, बिहार से दोगुनी संख्या का होना है. पश्चिम बिहार में पचास प्रतिशत या उससे अधिक आबादी वाले मात्र दो जिले हैं. जबकि पश्चिम बंगाल में चालीस से पचास प्रतिशत या उससे ज्यादा आबादी वाले करीब 7 जिले हैं. इनमें मुर्शिदाबाद (66.28%), मालदा (52.27%), उत्तर दिनाजपुर (51.02%), दक्षिण 24 परगना (38.57%), और बीरभूम (37.06%) की आबादी मुसलमानों की है. इसके अलावा बर्दवान, चौबीस परगना और नादिया ऐसे जिले हैं जहां औसतन 27 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है. ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पश्चिम बंगाल में ज्यादा ही उम्मीदें लगा बैठी है.
ओवैसी की रणनीति
असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी का पश्चिम बंगाल में पांव रखने का सबसे बड़ा नुकसान ममता बनर्जी की पार्टी को ही होगा. ऐसे में तृणमूल कांग्रेस ने एआईएमआईएम को भाजपा का बीटीम कहके प्रचारित कर रही है. हालांकि एक तथ्य यह है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ने की तैयारियों के बीच एआईएमआईएम ने औपचारिक रूप से तृणमूल कांग्रेस से आग्रह कर दिया है कि उसे तृणमूल कांग्रे अपने गठनबंधन का हिस्सा बना ले. कुछ सीटें उसको दे. लेकिन इसका कोई जवाब तृणमूल कांग्रेस ने नहीं दिया है. इतना ही नहीं वह ओवैसी को भाजपा का एजेंट के रूप में ही प्रचारित कर रही है.
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जबकि दूसरी तरफ भाजपा को ओवैसी के चुनाव लड़ने का लाभा मिलेगा. इसलिए वह चाहेगी कि ओवैसी वहां चुनाव लड़ें ताकि ममता बनर्जी को ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो. ओवैसी इसी बीच में इसी फिराक में हैं कि वह अपनी पार्टी की पैठ पश्चिम बंगाल में बनाने के लिए उन क्षेत्रीय मुस्लिम शक्तियों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं जिन की वजह से मुसलमानों का वोट लिया जा सके. फुरफुरा शरीफ के अमीर को अपने पाले में लाने की कोशिश उसी रणनीति का हिस्सा है.
चुनौतियां
लेकिन पश्चिम बंगाल में ओवैसी की चुनौतियां बिहार जैसी आसान नहीं हैं. पश्चिम बंगाल और बिहार का असल फर्क कल्चर और भाषा का है. बिहार के मुसलमानों का कल्चर और भाषा हैदराबी कल्चर के काफी करीब है. औसी की जुबान उर्दू है जो बिहार के मुसलमानों के लिए काफी सहज है और उससे ओवसी में वह अपना अक्स देखते हैं. जबिक पश्चिम बंगाल के जिन क्षेत्रों में मुसलमानों की आबादी ज्यादा है वहां के मुसलमानों की भाषा और कल्चर दोनों बंगाली है. बल्कि बीरभूम, मालदा दीनाजपुर के दूरस्थ इलाकों के बंगाली मुसलमान तो उर्दू समझ भी नहीं पाते.
लेकिन बंगाल के शहरी क्षेत्रों के साथ कई इलाकों में उर्दू समझने व बोलने वालों की तादाद काफी है. साथ ही बंगाल के गैरबंगाली मुसलमा जिनमें ज्यादातर बिहार व यूपी के मुसलमान हैं जो उर्दू भाषी हैं. ऐसे इलाकों में ओवैसी को लाभ मिल सकता है.