कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कल देर शाम बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह की छुट्टी कर दी। उनकी जगह औरंगाबाद के कुटुंबा से दूसरी बार विधायक बने राजेश राम को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई है। अखिलेश सिंह को चलता किए जाने से पुराने नेताओं में हड़कंप है खासकर वे नेता परेशान हैं, जिनका काम रोज सदाकत आश्रम पार्टी दफ्तर में दरबार लगाना था। भाजपा-जदयू में भी चिंता देखी जा रही है। दोनों दल कांग्रेस की सक्रियता से परेशान हैं। उन्हें मालूम है कि अगर कांग्रेस मजबूत हुई, तो इसका अर्थ है कि भाजपा और जदयू कमजोर होगा। प्रशांत किशोर की राजनीति भी संकट में है। वहीं यह सर्वविदित है कि कांग्रेस के मजबूत होने से राजद के जनाधार में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
अखिलेश सिंह को पद से हटाए जाने के पीछे तीन कारण बताए जा रहे हैं। पहला यह कि वे राहुल गांधी की नई कांग्रेस में अनफिट हो गए थे। राहुल गांधी संविधान, जाति गणना, आरक्षण जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। इन मुद्दों पर अखिलेश सिंह कभी सक्रिय नहीं दिखे। पार्टी चाहती है कि नेता जनता के बीच जाएं तथा जनता के मुद्दे उठाएं। इस मामले में भी अखिलेश सिंह पूरी तरह फेल रहे हैं। वे नीतीश राज के खिलाफ कोई नैरेटिव नहीं बना रहे थे। अब जब कन्हैया कुमार ने पलायन रोको यात्रा शुरू की है, तब कांग्रेस किसी मुद्दे के साथ जनता में दिख रही है। अखिलेश सिंह को पुत्रमोह के कारण भी कुर्सी गंवानी पड़ी। पिछले दो लोकसभा चुनाव में उन्होंने बेटे को चुनाव लड़ाया, जबकि वे कभी कांग्रेस के लिए काम करते नहीं दिखे।
अखिलेश सिंह कृष्णा अलावरू के बिहार प्रभारी बनने से ही परेशान थे। फिर कन्हैया कुमार के पदयात्रा शुरू करने से भी वे असहज थे। इतनी लंबी पदयात्रा करना या आयोजित करना अखिलेश सिंह के बूते के बाहर की बात थी। धीरे-धीरे वे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की नजर से गिरते गए और अंततः पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।