अल्लामा मोहम्मद इकबाल: 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा के रचनाकार'

‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा’ गीत रचने वाले शायर अल्लामा इकबाल का नाम इतिहास के सुनहरे अक्षरों में अंकित है.

यह गीत भारतवासियों में गर्वबोध भर देता है और साथ ही साथ अंग्रेजों से भारत की  आजादी के भाव जागृत करता है. 9 नवम्बर 1977 को सियालकोट में जन्मे अल्लामा इकबाल  इस्लामी दर्शन के बड़ा ज्ञाता था. उन्होंने ने दर्शन शास्त्र में एमए किया और लेकचरर के पद पर काम किया.

 

1904 में उन्होंने जब सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा की रचना की तो उनकी ख्याति पूरे देश में  फैल गयी.  सबसे पहली बार इकबाल का यह गीत इत्तेहाद नामक उर्दू पत्रिका में प्रकाशित हुआ. इकबाल ने एक और गीत तराना ए हिंद के नाम से लिखा.

इकबाल ने कानून की पढ़ाई के लिए लंदन चले गये और वहां से उन्होंने लॉ में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. लंदन में ही इकबाल ऑल इंडिया मुस्लिम लीग से जुड़ कर स्वदेशी मूवमेंट के लिए संघर्ष करते रहे.

लंदन से की कानून की पढ़ाई

1908 में लंदन से भारत वापसी के बाद इकबाल ने  मुसलमानों के लिए काम करना शुरू किया. उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काफ काम किया. इकबाल 1026 में पंजाब असेम्बली के सदस्य चुने गये. उन्होंने मुस्लिम लीग के 1930 के सत्र की अध्यक्षता की. यह जलसा इलाहाबाद में हुआ था. इसमें उन्होंने मुसलमानों के शेयर के बारे में अपनी बात रखी. बाद में उन्होंने पाकिस्तान के गठन की बात की.

इकबाल की बतौर शायर, उर्दू और फारसी दोनों जुबानों में बड़ी ख्याति थी. इकबाल ने अपना पूरा जीवन अपने मिशन में  बिताया.  मुसलमानों के कल्याण और साहित्य की साधना ही उनके जीवन का मिशन था. वह जीवन भर इस साधना में लीन रहे.

इकबाल ने अपनी आखिरी सांसे  21 अप्रैल 1938 को लाहौर में ली.  भले ही आज इकबाल इस दुनिया में नहीं है  लेकिन ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा’ जैसे अन्य गीतों और नज्मों के कारण वह हमेशा जीवित हैं.

 

 

 

 

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427