पटना, 27 जुलाई. बिहार प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से सुप्रसिद्ध कथाकार अमरकान्त जनशताब्दी आयोजन बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ में किया गया. इस अवसर पर बड़ी संख्या में पटना आलावा बिहार के विभिन्न क्षेत्रों के साहित्यकार, कवि, कहानीकार, रंगकर्मी, आदि शामिल हुए. पूरे कार्यक्रम का संचालन पटना प्रगतिशी ल संघ के कार्यकारी सचिव जयप्रकाश ने किया. पूरा कार्यक्रम तीन सत्रों में विभाजित रहा.
पहले सत्र का विषय था ‘अमरकान्त की साहित्यिक विरासत’.
बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष संतोष दीक्षित ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा ” अमरकान्त नई कहानी के दौर में चिन्हित किये गए. आजादी के बाद से अचानक हमारे सोचने का मेयार बदलने लगा. अब यूरोप से अकुंठ भाव से सीखने का प्रयास कर रहे थे. स्त्री – पुरुष संबंधों की एक नई व्याख्या शुरू हुई. 1955 में उनकी कहानी ‘इंटरव्यू’ आई थी. अमरकान्त इतनी सादगी और सच्चाई के साथ निम्न वर्ग के जीवन को अपनी कहानियों का विषय बनाया. गांधी जी की हत्या के बाद समाज में अनास्था फ़ैल गई थी. अमरकान्त उसी अनास्था के लेखक थे. उनकी ‘ज़िन्दगी और जोंक’ या ‘डिप्टी कलेक्टर’ कहानी पढ़ें तो आपको पता चलेगा. अमरकान्त हमेशा प्रगतिशील तबकों के बारे में बात करते रहे. अमरकान्त की कहानियों को पढ़ते हुए आँखों में आंसू आ जाते हैँ. वे प्रेमचंद की परम्परा को आगे बढ़ाते रहे. ”
हाजीपुर महिला कॉलेज में प्राध्यापक अनिशा ने अमरकान्त की कई कहानियों का उदाहरण देते हुए अपने संबोधन में कहा ” अमरकान्त ने ज़िन्दगी जैसी भी जीने की कोशिश की. उनके रवीन्द्र कालिया ने उनके 129 कहानियों का संकलन प्रकाशित किया था. अमरकान्त को प्रेमचंद की परम्परा का कहानीकार माना जाता है. यशपाल ने उनकी तुलना गोर्की से की थी. उनकी एक कहानी कहानी आर्थिक विप्पन्नता के कारण पिता काम करने के लिए बाहर जाने के लिए कहता हैं. लेखक गरीबी, भुखमरी के साथ साथ उच्च वर्ग में निम्न वर्ग के प्रति घृणा का भाव आता है. एक कहानी में कहा जाता है नीच और नींबू को निचोड़ने का ही काम करना चाहिए. निम्न वर्ग की समस्या खुल कर आई है. ‘पलाश के फूल’ में स्त्री पुरुष के संबंधों को सामने लाते है.
सासाराम से आये कथाकार नर्मदेश्वर ने कहा ” अमरकान्त जी से मैं ‘कथापर्व’ समारोह में मिला था. जिस परिवेश में रहा करते थे उसी परिवेश की कहानियाँ लिखा करते थे. अमरकान्त जी साधारण को विशिष्ट बनाने की कला में माहिर थे. ‘दोपहर का भोजन’ कहानी के बारे में यशपाल ने कहा था ऐसी ठंढी और बिना घटना के कहानी लिखना सबके बूते की बात नहीं है. ‘डिप्टी कलेक्टरी’ में बेटा के लिए मेवा खरीद कर लाता है. अमरकान्त छोटी छोटी बातों को विस्तार देते हैँ. विस्तार देने की कला जाननी हो तो ‘ डिप्टी कलेक्टर’ पढ़ने की जरूरत है. ”
कुमार सर्वेश ने अपने बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा ” अमरकान्त की ‘सूखा पत्ता’ उपन्यास पढ़ा तो मुझे ‘गुनाहों का देवता’ की याद आती रही. भूख की समस्या पर जितना अमरकान्त ने लिखा उतना बहुत कम लोगों ने लिखा हैं. स्त्री पात्रों में उन्होंने देखाया कि उन्हें भूख के साथ साथ पितृसत्ता का भी बोझ है उसपर. भूख के सवाल को उन्होंने जाति के सवाल से भी जोड़ कर देखने का प्रयास किया. प्रेमचंद व अमरकान्त दोनों यथार्थवादी धारा के रचनाक़ार हैँ लेकिन प्रेमचंद मुख्यतः ग्रामीण पृष्ठभूमि के लेखक हैँ जबकि अमरकान्त शहरी निम्नवर्ग को केंद्र में लाते हैँ.