आंबेडकर जयंती से पहले दलित को थूक चाटने पर किया मजबूर
बिहार में 15 वर्षों से न्याय के साथ विकास की सरकार काम कर रही है और कैसी विडंबना है कि आंबेडकर जयंती से ठीक एक दिन पहले दलित को थूक चाटने पर मजबूर किया गया।
बेरोजगारी, कोरोना में अस्पतालों की अव्यवस्था, अपराध के कारण सुर्खियों में रहनेवाला बिहार आज दलित उत्पीड़न के कारण चर्चा में है। गुजरात और उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न की घटनाएं सामने आती रही हैं। अब बिहार में भी मानवीय संवेदना को हिला देनेवाली घटना सामने आई है।
एनडीटीवी के मनीष ने एक वीडियो ट्विट किया है, जिसमें एक दलित युवक को अपना ही थूक चाटने पर दंबगों ने मजबूर किया। मनीष ने ट्विट किया- देखिए बिहार के गया जिले में पंचायत चुनाव में सिर उठाने पर सामंती लोग एक दलित को थूक चाटने पर कैसे मजबूर कर रहे हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा है कि नीतीश के शासन में सबकुछ ठीक है।
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हालांकि बिहार में न्याय के साथ विकास करनेवाली डबल इंजन की सरकार है, पर इस घटना से लगता है बिहार 50 वर्ष पीछे चला गया है। तब खटिया पर बैठने के कारण दलितों के साथ मारपीट की घटनाएं होती थीं। उन्हें तथाकथित बड़े लोगों के सामने बैठने की इजाजत नहीं थी। सवाल यह है कि इन 15 वर्षों में किस तरह न्याय के साथ विकास हुआ कि दलितों को ऐसी सामंतयुगीन सजा दी जा रही है।
इन वर्षों में दलित सशक्तीकरण का खूब विज्ञापन छपा, पर असलियत अब सामने आ रहा है।
खास बात यह कि कल 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती है। आंबेडकर जयंती को देशभर में संविधान दिवस, दलितों को न्याय देने, सशक्त करने के लिए भी मनाया जाता है। पंचायत चुनाव को भी इस रूप में खूब प्रचारित किया गया कि इससे समाज के सबसे वंचित वर्ग को ताकत व सम्मान मिला है। इस तरह के बड़े-बड़े आलेख और रिपोर्ट प्रकाशित होते रहे हैं। लेकिन गया की घटना ने इस धारणा पर फिर से विचार करने पर मजबूर कर दिया है।