मोदी को गुजरात में हर कीमित पर जीत चाहिए थी.मिल गयी. राहुल को गुजरात ने नये जोश से भर दिया है. कांग्रेस ने, हिंदुत्व की प्रोयगशाला में 16 सीटें बढ़ाई है जबकि भाजपा ने इतनी ही सीटें गंवाई है. भाजपा ने सत्ता जीती तो कांग्रेस ने मनोबल.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
भापजा ने पिछले चुनाव में 116 सीटें जीती ती. इस बार 99 तक सिमट रही है. कांग्रेस 61 से 77 पर पहुंच गयी. मोदी को इस बात का अंदाजा रहा होगा कि उनके लिए गुजरात आसान नहीं है. इसलिए उन्होंने हर हतकंडे अपनाये, सिवाये विकास के एजेंडे को छोड़ कर. सबका साथ सबका विकास और विकास का गुजरात मॉडल के नाम पर 2014 में केंद्र में सत्ता में आयी भाजपा, गुजरात चुनाव में इस मुद्दे पर एक शब्द नहीं बोल पायी. मणिशंकर अय्यर के ‘नीच’ वाले बयान को मोदी ने अपना अंतिम ढ़ाल बना डाला. कहा मैं नीच जाति का हूं.यह गुजरात का अपमान है.
वह पाकिस्तान को चुनाव में खीच लाये. अहमद पटेल को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बता कर अहमद मियां पटेल के नाम पर हिंदुओं की भावनाओं का दोहन करने की हद तक पहुंच गये. दर असल मोदी की राजनीति का यही वास्तविक स्वरूप है. मोदी जानते हैं कि वह हिंदुत्व की राजनीति के प्रतीक है. इस प्रतीक से वह बहुसंख्य हिंदुओं को खीच लेते हैं. उन्हें और किसी बात से ज्यादा इस बात पर यकीन होता है कि वह चुनाव को हिंदू बनाम मुसलमान का आखिरी दाव चल कर ही जीत हासिल कर सकते हैं.
यूपी में रमजान और दिवाली की राजनीति भी उन्होंने की. और जीते. हां बिहार में पाकिस्तान वाला उनका फार्मुला काम न आया. निगेटिव इश्यु पर राजनीति करना मोदी की राजनीतिक संस्कृति है. राहुल ने इस बात की तरफ इशारा भी किया. उन्होंने कांग्रेसियों से कहा कि आप ने सकारात्मक राजनीति की.
गुजरात भाजपा के लिए प्राणवायु की तरह है. मोदी का उत्थान वहीं से हुआ. अगर वह गुजरात हार जाते तो कहा जाता कि उनके पतन की शुरुआत भी गुजरात से होती. उन्होंने गुजरात में सत्ता तो बचा ली लेकिन गुजरातियों का उनके प्रति प्रेम में जरूर कमी आयी है. 2012 की तुलना में भाजपा को 16 सीटें कम मिलना और लगभग 25 सीटों पर बड़ी मुश्किल से जीतना यही दर्शाता है. इस प्रकार 182 सीटों की असेम्बली में भाजपा को 99 सीटें मिली हैं. जबकि कांग्रेस को 77. सरकार बनाने के लिए न्यूनतम संख्या 92 को भाजपा ने प्राप्त कर लिया है. दूसरी तरफ कांग्रेस पिछली बार की तुलना में सशक्त हुई है.
राहुल के लिए यही सकारात्मक पक्ष है. राहुल अपने सपोर्टर्स को यही समझा रहे हैं कि वे सत्ता हार कर भी अपनी शक्ति बढ़ाने में कामयाब रहे हैं. उनकी नजरें 2019 लोकसभा चुनाव पर है. उनका हौसला बढ़ा है. गुजरात के चुनाव नतीजे ने मोदी, अमित शाह के लिए चुनौतियों का पहाड़ ला कर रख दिया है.