CAA के खिलाफ धधक रहा है असम, मद्धम नहीं पड़ी है आंदोलन की चिंगारी
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
इस मुगालते में मत रहिये कि CAA के खिलाफ असम में आंदोलन की चिंगारी मद्धम पड़ गयी है. भले ही मोदी मीडिया इन खबरों को नहीं दिखा रही हो पर सच्चाई यह है कि असमी लोग दो-दो किलो चावल जमा कर इस आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने में लगे हैं.
कह तो ये भी रहे हैं कि चावल क्या चीज है हम खून देने को तैयार हैं, पर यह कानून उन्हें मंजूर नहीं.
बिजनस स्टंडर्ड की खबर है कि डिब्रुगढ के लोगों ने 350 क्विंटल चाव आल असम स्टुडेंट्स युनियन के नेता लुरिन ज्योति गोगोई को दिया है कि वह इस आंदोलन को मजबूती दें. हर रोज हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं. लोकल लोग यहां तक कह रहे हैं कि ये तो चावल है, जरूरत पड़ी तो हम खून देने को तैयार हैं लेकिन जिन 19 लाख लोगों को NRC की लिस्ट से बाहर किया गया है उन्हें एक इंच जमीन नहीं देने वाले.
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NRC से कितना डैमेज होगा हिंदुओं का दलित, पिछड़ा व आदिवासी समाज
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आल स्टुडेंट असम युनियन ने चुनौती देते हुए कहा है कि मोदी या शाह में हिम्मत है तो आयें और साबित करें कि CAA असम के लोगों के खिलाफ नहीं है.
क्यों हो रहा विरोध
आपको याद दिलाना चाहेंगे कि यह आल असम स्टुडेंट्स युनियन ही है जिसने सबसे पहले वहां से बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. उसी ने मांग रखी थी कि NRC लाया जाये. और अब वही संगठन CAA के खिलाफ आंदोलनरत है. ऐसा इसलिए कि वह संगठन कत्तई स्वीकार नहीं करना चाहता कि असम में बांग्लादेशी रहें. असम के लोगों के लिए बांग्लादेशी मुस्लिम या हिंदू की बात ही नहीं. वे चाहते हैं कि कोई बांग्लाभाषी विदेशी उन्हें मंजूर नहीं. लेकिन CAA कानून बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देने का हथियार है, जो उसम के लोगों को स्वीकार्य नहीं है.
आपको याद रखना चाहिए कि असम इस आंदोलन के चलते धधक रहा है और प्राइम मिनिस्टर मोदी वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. पिछले डेढ़ महीने में उनकी असम यात्रा दो बार टाली जा चुकी है.
CAA के खिलाफ आंदोलन करने वालों को अपने आंदोलन की शुरुआत हर दिन असम के आंदोलनकारियों को सलाम करके करा चाहिए.