बिहार चुनाव: क्या टीवी चैनल दिखा रहे हैं मनगढ़ंत ओपिनियन पोल ?
शाहबाज़ की विशेष रिपोर्ट
बिहार चुनाव से पहले टीवी चैनलों के ओपिनियन पोल आने शुरू हो गए हैं. इसके नतीजे जहाँ NDA को बढ़त मिलने का अनुमान लगा रहे हैं जबकि महागठबंधन CM उम्मीदवार तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनावी सभाओं का आंकलन इसके ठीक उलट है.
एबीपी न्यूज़ के सीवोटर ओपियिन पोल के मुताबिक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA गठबंधन को बढ़त मिलते हुए दिखाया गया है. एबीपी न्यूज़-सीवोटर ओपियिन पोल के मुताबिक बिहार की कुल 243 सीटों में वोट प्रतिशत के हिसाब से नीतीश+ के खाते में 43% वोट, लालू+ को 35 % वोट, चिराग पासवान की एलजेपी को 4% वोट और 18% वोट अन्य के खाते में जा सकते हैं.
लेकिन इसी एबीपी न्यूज़ के सीवोटर ओपियिन पोल का दूसरा पहलु जो आश्चर्यजनक है वह यह है कि 60 % लोगों ने कहा कि वह नीतीश कुमार से नाराज हैं और मुख्यमंत्री बदलना चाहते हैं. वहीं 26% लोगों ने कहा कि हम नाराज तो हैं लेकिन नीतीश को बदलना नहीं चाहते. वहीँ 14% लोग ऐसे हैं जो न नाराज हैं और न ही नीतीश को बदलना चाहते हैं.
दरअसल अगर महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) और वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चुनाव प्रचार में जनसमर्थन (Mass Support) को देखें तो तस्वीर बिलकुल उलट है. बता दें कि बिहार में 16 अक्टूबर से फिजिकल रूप में चुनाव प्रचार हो रहा है.
जहाँ एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कम से कम चार चुनावी सभाओं में जनता के विरोध का सामना करना पड़ा है और वह तिलमिला उठे हैं वहीँ बिहार के नेता प्रतिपक्ष एवं महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव की सभाओं में जनसैलाब उमड़ रहा है और उनका जनता से जुडाव बहुत अच्छा दिख रहा है.
अब यह बात समझना मुश्किल नहीं है कि ऐसा क्यूँ हो रहा है. एबीपी न्यूज़ के ओपिनियन पोल के मुताबिक 60 % लोगों ने बिहार में सरकार बदलने की इच्छा जताई. संभवतः ऐसा बेरोज़गारी, पलायन, गरीबी और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर तेजस्वी यादव द्वारा नीतीश सरकार को घेरने के कारण हुआ. तेजस्वी कि जनसभाओं में उनके कैंपेन को अब सरकार और जनता के बीच संघर्ष बताया जाने लगा है. जिससे NDA खेमा अब असहज महसूस कर रहा है.
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रवक्ता मनोज झा ने ओपिनियन पोल पर तंज़ कसते हुए कहा था “जब ओपिनियन पोल ‘ओपिनिटेड’ पोल बन जाते हैं..क्या आपको हाल ही में हुए # झारखंड के चुनाव याद नहीं हैं”।
अब अगर ओपिनियन पोल के आलावा जब ज़मीनी जनता समर्थन कि बात करें तो पिछले तीन महिनों के अन्दर बिहार की जनता का राष्ट्रीय जनता दल की तरफ झुकाव बढ़ा है. इसको देखते हुए राजद नेतृत्व ने अपनी कथनी और करनी में फर्क को ख़त्म करना चाहा है. राजद के घोषणा-पत्र में अनेक ऐसे वादे हैं जो तेजस्वी लगातार दुहरा रहे हैं.
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने अपने अधिकारिक घोषणा-पत्र में राज्य के युवाओं को 10 लाख नौकरियां और सरकारी नौकरियों में बिहारियों को 85 % आरक्षण देने के आलावा किसानों कि क़र्ज़ माफ़ी, बिहार की कुल GDP का 22 % शिक्षा के ऊपर खर्च करने, शिक्षकों को समान काम समान वेतनमान देने, संविदा प्रथा समाप्त करने और उद्योग विकास से जुड़े वादे किये हैं. इसका असर साफ देखने को मिल रहा है.
बिहार में बेरोज़गारी, शिक्षकों के लिए संविदा प्रथा, उद्योगों का विकास, पलायन और किसानों के हालात अब सिर्फ राजनीतिक मंच के मुद्दे नहीं रहे बल्कि गली और नुक्कड़ों में चर्चा किये जाने वाले विषय बन गए हैं. ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि महागठबंधन बिहार के वोटरों खासकर जाति से ऊपर उठकर सोंचने वाले युवा वर्ग, शिक्षक, कृषक और बदलाव चाहने वाले लोगों का भरपूर समर्थन मिलेगा. हालाकि तमाम ओपिनियन पोल अलग ही तस्वीर पेश कर रहे हैं.
आपको बता दें कि ओपिनियन पोल में लोगों कि अभी के समय कि राय ली जाती है. जबकि एग्जिट पोल को अधिक विश्वसनीय माना जाता है. एग्जिट पोल में वोटरों द्वारा वोट देने के बाद उनकी राय पूछी जाती है. इसलिए यह अधिक विश्वसनीय माना जाता है.
अब तो अधिक विस्वसनीय न्यूज़ चैनल भी तेजस्वी के पक्ष में हवा बहने की भविष्यवाणी कर रहे हैं. NDTV इंडिया वेबसाइट पर छपे प्रियदर्शन के आलेख में उन्होंने लिखा “तो बिहार में क्या कोई हवा है? इसके बारे में निश्चयपूर्वक कुछ भी कहना मुश्किल है. दुर्भाग्य से बुरी तरह बंटे हुए समाज में बंटा हुआ मीडिया सिर्फ वही देखने को तैयार है जो वह देखना चाहता है. लेकिन कम से कम दो चीज़ें ऐसी हैं जो फिलहाल लोगों को एक राय बनाने का अवसर दे रही हैं”
‘पहली बात तो हाल में आए वे चुनाव सर्वेक्षण हैं जो बता रहे हैं कि एनडीए और महागठबंधन के बीच का फ़ासला कम हो रहा है. इसी तरह मुख्यमंत्री पद की प्रतिद्वंद्विता के मामले में भी नीतीश और तेजस्वी के बीच की दूरी घटी है. बेशक, अब भी नीतीश आगे हैं, लेकिन पहले उनकी जो असंदिग्ध और अलंघ्य लगने वाली बढ़त होती थी, वह सिमट रही है”.
दरअसल देश की मीडिया के कुछ हलकों पर पहले भी भाजपा एवं NDA के पक्ष में ओपिनियन पोल दिखाने के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में बिहार चुनाव के नतीजे ही बता सकते हैं कि जीत किसकी होगी महागठबंधन की या NDA की.