भागलपुर में दंगा भड़काने के आरोपी व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे को कम से कम 14 दिन जेल की कोठरी में बिताना होगा. भागलपुर सत्रन्यायालय ने उन्हें जेल भेजने का हुक्म दिया है.
नौकरशाही मीडिया
जेल न जा सकें इसके लिए भाजपा के कई कद्दावर नेताओं ने एड़ी चोटी की मेहनत की थी. उधर राज्य सरकार पर आरोप लगाये जाते रहे कि सरका गिरफ्तार करने का साहस तक नहीं कर पा रही है. हुआ भी यही. जब अर्जित चौबे की तमाम कोशिशिशे नाकाम हो गयीं और अदालत ने अग्रिम बेल देने से मना कर दिया तो उन्होंने खुद को पुलिस के हवले कर दिया.
अर्जित चौबे ने कल रात पटना में पुलिस के समक्ष सरेंडर कर दिया था. इस पूरे प्रकरण में भाजपा और जदयू के बीच खूब हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला. पहले दिन अर्जित ने पटना पहुंच कर बिहार सरकार को चैलेंज कर दिया और यहां तक कहा कि वह एफआईआर को कूड़ेदान में डालते हैं. इस पर नीतीश सरकार के बड़े नेता खामोश रहे. फिर दो दिनों बाद अर्जित ने फेसबुक लाइव किया, वो भी पटना से. उनके इस दुस्साहस से सरकार की किरकिरी काफी बढ़ गयी. नीतीश कुमार पर लगातार गंभीर आरोप लगाये जाने लगे. तेज्सवी ने यहां तक कह डाला कि अगर सरकार में इतना दम नही ंकि दंगाई को गिरफ्तार कर सके तो वह हमें दो पुलिस वाले को दें मैं गिरफ्तार करके दिखाता हूं. इस भारी फजीहत के बाद जदयू के महासचिव केसी त्यागी ने बयान जारी कर कहा कि अब अर्जित के समक्ष दो ही रास्ते हैं वह गिरफ्तारी दें या अदालत में सरेंडर करें. लेकिन इस बयान की भी अर्जित ने कोई परवाह नहीं की. वह छिपते रहे और अदालत में अपनी बेल याचिका मंजूर होने का इंतजार करते रहे. लेकिन कल शाम अदालत ने जब बेल याचिका खारिज कर दी तब उन्होंने खुद को पुलिस के हवाले किया.
नीतीश सरकार को किया चैलेंज
भागलपुर के दंगे के बाद यह मैसेज राज्य भर में गया कि दंगा आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करने के कारण ही राज्य के आठ जिलों में दंगे भड़के. आम लोगों में कानून के राज पर भरोसा उठ गया. नतीश के राज के इकबाल पर सवाल उठने लगे. सुशासन का डंका खोखला लगने लगा. इस बीच अनेक सामाजिक संगठनों ने भी नीतीश की सख्त आलोचना शुरू कर दी. इस पूरे मामले के दौरान दिलचस्प बात यह रही कि नीतीश कुमार ने पूरी तरह से चुप्पी साधे रखी. वह इस मामले या अन्य जगहों पर लगातार हो रहे साम्प्रदायिक गुंडागर्दी पर एक दम खामोश हो गये. हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि पुलिस प्रशासन भी इस दौरान मौन रहा. अनेक जिलों में दंगा रोकने की उसने काफी कोशिश की, और काफी हद तक सफल भी रही.
लेकिन सवाल यह था कि नीतीश कुमार इन मामलों पर क्यों चुप थे, जबकि भाजपा के अनेक नेता चीख चीख कर यह कहते रहे कि अर्जित निर्दोश हैं. उधर हर छोटी बड़ी घटना पर दनादन ट्विट करने वाले उपमुख्यमंत्री भी भागलपुर समेत अन्य जगहों के दंगा पर जुबान सिल रखी थी. इससे बिहार के करोड़ों लोगों में काफी मायूसी छाती चली गयी.
दंगा भड़काने और समाज को बांटने का ये खेल पिछले 15 दिनों से चल रहा है. अर्जित चौबे ने जब पटना में प्रेस कांफ्रेंस करके पटना में नीतीश सरकार को चुनौती दी तो लोगों में एक मैसेज यह भी गया कि दिल्ली के कुछ बड़े नेताओं के इशारे पर उन्होंने नीतीश सरकार को नीचा दिखाने के लिए ये सब किया है. इस बात में सच्चाई हो या ना हो, लेकिन आम लोगों में यही संदेश गया है. पर अब जब चौबे ने गिऱफ्ती दे दी है और 14 दिनों के न्यायिक जेल में भेज दिये गये हैं तो उन्हें भी पता चल गया होगा कि बढ़बोले का अंजाम क्या होता है.
अंदर की बात
इस बीच सूत्रों का कहना है कि भाजपा के कुछ नेता नीतीश के सम्पर्क में थे. लेकिन नीतीश कुमार ने उन्हें साफ इशारा दे दिया था कि कानूनी शिकंजे में कोई ढील नहीं दी जायेगी. इतना ही नहीं उन्होंने आम लोगों में सरकार की गिरती साख को बचाने के लिए पहले केसी त्यागी को सामने किया. उनसे कहलवाया कि मंत्री पुत्र को कानून के समक्ष आना होगा. या तो गिरफ्तारी देनी होगी या सरेंडर करना होगा. इसके बाद जदयू के एक और वरिष्ठ नेता श्याम रजक ने सरकार की तरफ से मोर्चा संभाला और कहा कि सरकार सुशासन पर कोई समझौता नहीं करने वाली.
इस पूरे मामले में नतीजा सामने है. पर इतना तो तय है कि नीतीश सरकार पर से लोगों के विश्वास में भारी कमी आयी है.