अशफाक करीम: जिद्द के आगे जीत है

अहमद अशफाक करीम नाम है इनका. एक बागी. जो लड़-भिड़ जाने का जुनून रखता है. लड़ जाता है सिस्टम से. लड़ाई मोल ले लेता है सियासत के सिंहासन पर बैठे लोगों से. और खुद के लिए मुसीबतों का पहाड़ उठा लेता है, लेकिन लडना नहीं छोड़ता. अपनी जिद्द  से अशफाक निजी क्षेत्र में पूर्वी भारत का विशालतम अलकरीम युनिवर्सिटी बना देते हैं. और यह जिद्द ही है उनकी कि अब देश के शिखर सदन तक पहुंच रहे हैं.

अशफाक करीम: जिद्द के आगे जीत है

 

 

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ] इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम, फॉर्मर फेलो इंटरनेशनल फोर्ड फाउंडेशन[/author]

सिस्टम अशफाक करीम को मसल कर किनारे फेक देता है तो वह अदालतों तक पहुंच जाता है. और जीत कर चैन लेता है. यह सच है कि उन्हें वर्दी की धौंस दिखाई गयी. सलाखों में डाला गया. बिस्तर से घसीट कर थाने पहुंचाया गया. शिक्षा माफिया और न जाने क्या-क्या कहा गया. पर वह हर आरोपों के पहाड़ के सीने को चीरता हुआ अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता गया. वह झुकना नहीं जानता. क्योंकि वह लड़ना जानता है. नतीजा जो भी हो.

महत्वकांक्षा की बुलंदी

ऊपर जो बातें मैंने कहीं है. उसे कुछ लोग बढ़बोलापन कहके नकार सकते हैं. कुछ लोग ऐतराज कर सकते हैं. पर ये वही लोग हो सकते हैं जो अशफाक करीम को नहीं जानते, या जानते भी हैं तो उन उधार की आंखों से जो मीडिया के एक हिस्से ने दिखाया है.

 

अहमद अशफाक करीम महत्वकांक्षाओं की बुलंदी से लबरेज एक ऐसे व्यक्ति का नाम है, जिसने महज 27 साल की उम्र में पूर्वी भारत में एक ऐसे शिक्षण संस्थान की नीव रख देता है जिसकी कल्पना बड़े से बड़े धुरंधर नहीं कर सकते. 1987 में इस युवा ने कटिहार मेडिकल कालेज की नीव रखने का साहस दिखाया. यह तब की बात है जब निजी शिक्षण संस्थानों की शुरुआत करने का जोखिम कोई उठाने के पहले हजार बार सोचता था. लेकिन अशफाक ने  संविधान के उस अनुच्छेद को युवावस्था में ही समझ लिया था जो अल्पसंख्यक समुदाय को अपना शिक्षण संस्थान खोलने और चलाने का अधिकार देता है. 1990-91 आते कटिहार मेडिकल कालेज बिहार सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त करने की जद्दोजहद शुरू करता है. तब तक लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री हो चुके थे.

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सरकार में बैठे कुछ नौकरशाह कटिहार मेडिकल कालेज के लगातार बढ़ते कदम से जलने भूनने लगते हैं. मेडिकल कालेज की मान्यता देने से कतराते हैं. लड़ाई चलती है. अशफाक पटना हाई कोर्ट पहुंचते हैं. हारते हैं. सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं. फिर जीतते हैं. लेकिन नौकरशाही की लाल फीताशाही उन्हें तब भी चैन से बैठने नहीं देती. अशफाक अपना कदम फिर भी पीछे नहीं खीचते. नीतीश का दौर आता है. किटहार मेडिकल कालेज अब अलकरीम युनिवर्सिटी बनने की राह पर है. सरकार किसी भी निजी संस्थानों में सबसे पहले अलकरीम को लेटर आफ इंटेट देती है. ऐसा वह इसलिए नहीं करती कि अशफाक का राजनीतक रसूख है. बल्कि इसलिए देती है कि समूचे पूर्वी भारत में ऐसी बुनियादी सुवाधाओं, योग्यताओ और संसाधनों से युक्त कोई और संस्थान नहीं है. अशफाक जुझारू हैं. लड़ाकू हैं, झुकना नहीं जानते इसलिए नीतीश के नौकराशाहों के सामने भी नहीं झुकते. उके ऊपर रेड डाला जाता है. सलाखों में उन्हें पहुंचाया जाता है. बदनाम किया जाता है. पर वह समझौता नहीं करते. अलकरीम युनिवर्सिटी के वजूद पर रुकावटें खड़ी की जाती हैं.पर रुकावटों से लरड़ने वाले अशफाक अपना सफर जारी रखते हैं. अलकरीम युनिवर्सिटी एक आलीशान युनिवर्सिटी के रूप में सामने खड़ा है. इसमें अकेले कटिहार मेडिकल कालेज का बिल्डअप एरिया 9 लाख स्कवायर फिट का है. आज नहीं तो कल अलकरीम अपने वजदू पर गर्व करेगा.

 

हालिया वर्षों में  अशफाक करीम को राज्यसभा में राजद ने तब भेजा है जब इससे पहले उसने किसी अल्पसंख्यक को नहीं भेजा था. ऐसे में राजद अपने एक बड़े वोटर समुह की शिकायतों से बचने का प्रयास किया है. लेकिन अल्पसंख्यक समाज में एक सवाल लोग फिर भी उठाने लगे हैं. दलित मुस्लिम समाज के लिए वर्षों से काम करने वाले उस्मान हलालखोर कहते हैं कि 2015 से अब तक जितने चुनाव हुए चाहे वह राज्यसभा के हों या विधानसभा के, उसके आंकड़ों को देखें तो पसमांदा मुसलमानों की नुमाइंदगी राजद में  दाल में नमक की तरह भी नहीं दिखती. राजद जब डेढ़ साल तक सरकार का हिस्सा रहा तब भी पसमांदा समाज को मंत्री बनने का अवसर नहीं मिला. 85 प्रतिशत आबादी वाले पसमांदा समाज भी राजद का ही वोटर है.

 

दिमाग से अंट्रोपरेन्योर, दिल में सियासत

अऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी वली रहमानी ने पिछले वर्ष अलकरीम युनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में कहा था कि अशफाक करीम की मेहनत और लगन का नतीजा है कि 30 साल पहले देखा गया उनका सपना सच साबित हुआ. अशफाक करीम वैसे व्यक्ति हैं जो किसी मंजिल को हासिल कर लेने के बाद फिर नये सफर और नई मंजिल की तरफ निकल पड़ते हैं.

 

अशफाक करीम दिमाग से एंट्रोपरेन्योर हैं. पर दिल में सियासत को बसाये रखते हैं. अशफाक करीम की यही सबसे बड़ी कमजोरी है. पर वह अपनी इस कमजोरी से खुदके लिए मजबूती हासिल करना चाहते हैं. सियासत के दावंपेंच उनके दिल में है इसलिए इसकी कीमत भी उन्हें चुकानी पड़ी है. तब शायद लालू सरकार से युद्ध इसलिए हुई कि अशफाक करीम उन चुनिंदा लोगों में से थे जिन्होंने लालू के खिलाफ समता पार्टी का गठन हुआ था.

सियासत में पर्दे के पीछे का खिलाड़ी

 

अशफाक करीम को करीब से जाने वाले कहते हैं कि समता पार्टी के गठन की पहली बैठक कटिहार मेडिकल कालेज के परिसर में ही हुई थी.  यह समता पार्टी ही थी जिसने विभिन्न पड़ाओं से गुजरते हुए जनता दल यू तक पहुंची. और इसी दल के  नीतीश कुमार इस सूबे के मुख्यमंत्री बने.  संभव है कि लालू प्रसाद जब अपने विरोधियों से घिरते जा रहे थे और उनके मुखालिफ खड़ा होने की पटकथा लिखने वालों से उनकी नाराजगी जरूर हुई होगी. उन्ही में से एक अशफाक करीम थे. लेकिन बाद के दिनों में अशफाक की जुझारू फितरत ने समता पार्टी से अलग राह अपनाने को बाध्य कर दिया. वह लोकजनशक्ति पार्टी में गये. रामबिलास पासवान की इस पार्टी के वित्तपोषण में , बताया जाता है कि अशफाक करीम ने बड़ी भूमिका निभाई.अशफाक की सियासी महत्वकांक्षा ने उन्हें कांग्रेस में भी पहुंचाया. वह सत्ता के शिखर को छूना चाहते थे.  उनके द्वारा तमाम पार्टियों को वित्तीय सपोर्ट करने की चर्चा राजनीति के गलियारे में खूब दिलचस्पी से सुनी और सुनाई जाती है.पर इन दशकों में किसी ने अशफाक को सियासत की सीढ़ी चढ़ने में सहायाता नहीं कि. फिर वह खुद चुनावी मैदान में कूदे. हार गये.

वक्त ने पलटी खाई. और उन्हीं लालू प्रसाद ने उन्हें राज्य सभा पहुंचाया.

 

आलोचकों की इन उद्योगपतियों पर बेशर्म चुप्पी 

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इसमें संदेह नहीं कि अशफाक करीम ने मेडिकल कालेज में दाखिले के लिए मोटी रकम हासिल की होगी. करोड़ों कमाया होगा. पर इसमें भी संदेह नहीं कि उन्होंने अन्य उद्योगपतियों की तरह सियासत के मैदान में करोड़ों लुटाये भी होंगे. जब उद्योगपति किंग महेंद्र भाजपा के अलावा अन्य तमाम पार्टियों के टिकट से बारी बारी से डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से राज्यसभा में बने हुए हैं. कभी कांग्रेस, कभी राजद, कभी जदयू, सबके सहारे. जदयू तो उन्हें इसबार लगातार तीसरी बार राज्य सभा में भेज रहा है. भाजपा के पास तो ऐसे दर्जनों उद्योगपति हैं जो राज्यसभा पर कब्जा जमाये बैठे हैं. ऐसे में अशफाक करीम के पूंजीपति होने को कारण बता कर कोई भी सियासी पार्टी उनका विरोध करने का साहस नहीं जुटा सकती.

 

ऐसे में जो लोग अशफाक करीम पर टिकट खरीद कर राज्यसभा जाने का आरोप लगाते हैं वही, भाजपा के आरके ( बहुराष्ट्रीय सेक्युरिटी कम्पनी के मालिक) सिन्हा, जदयू के किंग महेंद्र (बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनी के मालिक) की पूंजी की बात पर शर्मनाक चुप्पी साध लेते हैं.

जब से अशफाक करीम को राजद ने राज्यसभा भेजने का ऐलान किया है तब से  कुछ लोग लगातार अशफाक करीम  की छवि पर लगातार हमला बोल रहे हैं. उनके बेड के नीचे करोड़ों रुपये खोजने में लगे हैं. जबकि इस काम को जांच एजेंसिया बखूबी करने में सक्षम हैं. अशफाक को वर्षों से जानने वाले कहते हैं कि  जिन मामलो में उन्हें  षड्यंत्र करके  फंसाया गया है वे मामले पहले ही धरासाई हो चुके हैं. या जो बचे हैं उन मामलो में भी उनका कोई बाल बाका नहीं होने वाला.

जैसा कि हमने ऊपर कहा है कि अशफाक करीम दिमाग से एंट्रोपरेन्योर हैं, पर दिल से सियासतदां हैं. राज्यसभा में पहुंचना अशफाक के करियर की दूसरी पारी की शुरुआत है. अशफाक के एक करीबी दावा करते हैं कि अशफाक करीम के पास अवसर है कि वह अपनी गहरी सियासी समझ से अपने विरोधियों को पस्त कर सकते हैं.

 

 

By Editor


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