जनता दल राष्ट्रवादी के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक रहमान ने कहा है कि मुसलमानों को मजहबी मुद्दे में गैर जरूरी तरीके से उलझाये रखने की बड़ी साजिश रची जा रही है.
आज मराठा, जाट जैसे समुदाय अपने वजूद की लड़ाई के लिए सड़कों पर उतर चुके हैं महाराष्ट्र से ले कर हरियाणा तक रिजर्वेशन की आग लगी हुई है. जबकि देश के 25 करोड़ मुसलमान अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए बेचैन नजर आते हैं. आज छोटी आबादी वाले समुदाय के लोग सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगाने को तैयार हैं जबकि मुसलमान, निकाह, हलाला, तलाक जैसे मुद्दों में उलझे हुए हैं. भारत की सेक्युलर-कौम्युनल पार्टी भी यही चाहती हैं कि मसलमान इससे आगे कुछ सोच भी नहीं पायें. जबकि मुसलमानों के मजहबी रहनुमा भी यही चाहते है ंकि मुसलमानों का इन मुद्दों में उलझे रहने में ही उनकी भलाई है. जबकि हकीकत है कि लोकतांत्रिक देश में सत्ता की लड़ाई से ही मजहब भी सुरक्षित रह सकता है. अशफाक रहमान ने कहा कि अगर हम खुद अपनी तरफदारी नहीं कर सकते तो कोई और हमारी मदद के लिए क्यों आयेगा. उन्होंने कहा कि जो समुदाय अपनी लड़ाई खुद लड़ता है, उसी की मदद के लिए हजारों हाथ सामने आ जाते हैं. लेकिन मुसलमान तो बेखुदी की हालत में हैं. पहले हज सब्सिडी खत्म की गयी और अब इन पर दोहरी मार पड़ने वाली है. केंद्र सरकार ने बड़ी चालाकी से हज पर 18 फीसदीजीएसटी लागू कर दिया है.
अशफाक रहमान ने हज पर दोहरी मार की व्याख्या करते हु कहा कि अगर अब तक लोग हज पर दो लाख खर्च करते है तो अगली बार उन्हें दो लाख छत्तीस हजार रुपये अदा करने पड़ेंगे. उन्होंने कहा कि मजहबी मामलों में टैक्स की छूट हुआ करती है लेकिन जीएसटी के दायरे में आ जाने के बाद अब उन पर इंकम टैक्स की नकेल भी लगेगी. और उन्हें हज की रकम अदा करने से पहले इस पर इंकम टैक्स भी अदा करना पड़ेगा. अशफाक रहमान ने कहा कि सरकार की इस बारीक साजिश को मुसलमान समझ नहीं पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि मुसमानों को सियासी हथियार से मारा जा रहा है और हम सियासत करने को तैयार नहीं हैं.
सरकार की इस बारीक साजिश को मुसलमान समझ नहीं पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि मुसमानों को सियासी हथियार से मारा जा रहा है और हम सियासत करने को तैयार नहीं हैं- अशफाक रहमान
अशफाक रहमान ने इस बात पर चिंता जताई कि जो कुछ लोग मुसलमानों का नेतृत्व करना चाह रहे हैं उन्हें भाजपा का एजेंट घोषित कर दिया जा रहा है. ऐसे में मुसलमानों की सियासत कभी नहीं उभर सकती है.
अशफाक रहमान ने कहा कि मुसलमानों को मराठा, जाट और दलितों से सीखने की जरूरत है जो अपने अधिकारों के लिए मर मिटने को तैयार हैं. क्योंकि वे मर मिट कर अपना नेतृत्व उभार रहे हैं. जबकि मुसलमानों में लीडरशिप की बहस पहले होती है और अवाम सोये हुए हैं. उन्हें लगता है कि जब आसमान से लीडरशिप टपेगा तो वो साथ हो लेंगे. यह कभी संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर मुस्लिम अवाम जाटों, मराठों और दलितों की तरह अपने वजूद की लड़ाई को तैयार हो जायें तो मुसलमान सियासत का रुख बदल सकते हैं.