मुख्यमंत्री तथा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने पार्टी के भीतर एक नेता, एक पद के सिद्धांत को खुद ही तोड़ दिया। अपने करीबी मंत्री अशोक चौधरी को पार्टी का महासचिव बना दिया। नौकरशाही डॉट कॉम ने मंत्री को महासचिव बनाने पर जब कुछ नेताओं से बात की, तो लोगों का कहना है कि नीतीश कुमार स्वस्थ नहीं हैं और उनके करीबियों में खींचतान बढ़ गई है। पार्टी और सत्ता पर नियंत्रण के लिए यह खींचतान है, जिसमें मंत्री रहते हुए अशोक चौधरी ने पार्टी में राष्ट्रीय महासिचव का पद भी झपट लिया।

राजनीतिक गलियारे में नीतीश कुमार के इस निर्णय पर कुछ लोगों को आश्चर्य भी है। लोगों का कहना है कि दो दिन पहले श्याम रजक को नीतीश कुमार ने पार्टी का महासचिव बनाया। अब एक दूसरे दलित नेता को भी महासचिव बनाने का क्या औचित्य है। हो सकता है कि अशोक चौधरी नहीं चाहते हों कि पार्टी में कोई दूसरा दलित फेस सामने आए।

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अशोक चौधरी हाल के दिनों में विवादों में भी रहे हैं। उन्होंने जहानाबाद में एक कार्यक्रम में कहा था कि भूमिहारों ने नीतीश कुमार को वोट नहीं दिया। इसके बाद काफी बवाल हुआ था। अशोक चौधरी को सफाई देनी पड़ी थी। इससे पहले उन्होंने लोकसभा चुनाव में बेटी को लोजपा का टिकट दिलाया, तब भी सवाल उठा था कि नीतीश कुमार के विरोधी चिराग पासवान की पार्टी से नीतीश के करीबी ने बेटी को क्यों टिकट दिलाया। यही नहीं, दो दिन पहले अशोच चौधरी ने एक कविता पोस्ट की, उस पर भी हंगामा हुआ कि कहीं यह नीतीश कुमार को निशाने पर लेना तो नहीं है। इस पर भी अशोक चौधरी ने सफाई दी और नीतीश कुमार के साथ अपनी ताजा तस्वीर शेयर करके बताने की कोशिश की कि उनकी कितनी नजदीकी है। अब इसी बीच उन्हें महासचिव पद दिए जाने पर लोग एक पद एक नेता सिद्धांत पर भी सवाल उठा रहे हैं। वैसे खुद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री रहते हुए अध्यक्ष भी हैं। लेकिन उनके मामले को अपवाद माना गया था, अब अशोक चौधरी को महासचिव बनाने पर फिर से वह एक व्यक्ति एक पद सिद्धांत का सवाल उट गया है।

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By Editor


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