भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पटना सर्किल की टीम ने सुपरिटेंडिंग आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. गौतमी भट्टाचार्य के नेतृत्व में 16 जुलाई 2024 को पटना विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग का दौरा किया। इस अवसर पर उन्होंने विभागीय संग्रहालय का भ्रमण किया और उसके विकास के लिए बहुमूल्य सुझाव दिए। विभागाध्यक्ष डॉ. मो. सईद आलम, प्रो. नवीन कुमार, प्रो. बदर आरा, डॉ. मनोज कुमार, डॉ. ब्रजेश कुमार सिंह, डॉ. दिलीप, डॉ. मंदीप, डॉ. अरुण, डॉ. अशेष, दारोगा प्रसाद यादव, मदन पाण्डेय और विभाग के समस्त कर्मचारियों ने एएसआई की टीम का गर्मजोशी से स्वागत किया।

विभागाध्यक्ष डॉ. मो. सईद आलम ने बताया कि विभागीय संग्रहालय में चम्पा, अन्तिचक (विक्रमशिला), कुम्हरार, चिरांद जैसे पुरास्थलों से प्राप्त अत्यंत दुर्लभ पुरावशेषों का संकलन है। डॉ. आलम ने यह भी बताया कि बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग ने विभागीय संग्रहालय के जीर्णोद्धार के लिए अपनी सहमति दे दी है और इसके लिए पटना विश्वविद्यालय से भी प्रशासनिक मंजूरी एवं अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने का अनुरोध किया गया है।

19 जून को डेक्कन कॉलेज पोस्ट-ग्रेजुएट और रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे के पूर्व प्रोफेसर और कुलपति, राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर, गांधीनगर के महानिदेशक एवं दक्षिण एशियाई पुरातत्व सोसायटी (SOSAA) के अध्यक्ष प्रो. वसंत शिंदे और राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण के अध्यक्ष प्रो. किशोर कुमार बासा ने भी पटना विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग का दौरा किया था। सभी विद्वानों ने विभागीय संग्रहालय के दुर्लभ पुरावशेषों की प्रशंसा की; विशेष रूप से चम्पा से प्राप्त हाथी दांत की बनी नर्तकी की प्रतिमा की। यह छठी-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व की एक दुर्लभ प्रतिमा है। इस अवधि के किसी भी अन्य स्थल से हाथी दांत की महिला की मूर्ति प्राप्त नहीं हुई है। इस प्रतिमा का दाहिना हाथ और पैर प्राप्त नहीं हुआ है। इसके गर्दन, कंधे, कोहनी, कलाई और घुटने पर जोड़ हैं जिससे पता चलता है कि इसके विभिन्न अंगों को अलग-अलग बनाकर सही स्थानों पर जोड़ा गया है। हाथी दांत की यह प्रतिमा मिस्र और पश्चिम एशिया में पाई गई लकड़ी की मूर्तियों से मिलती-जुलती है और यह भारत के पश्चिम एशिया और उससे आगे के संपर्क को इंगित कर सकती है।

इसके अलावा, विभागीय संग्रहालय में और भी कई दुर्लभ संग्रह हैं जिनमें चिरांद (सारण, बिहार) से प्राप्त अस्थि के उपकरण, अन्तिचक विक्रमशिला (भागलपुर, बिहार) से प्राप्त भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध, चतुर्भुज गणेश, कमलासन पर स्थानक मुद्रा में विष्णु और छह सिर वाले कार्तिकेय की मूर्ति महत्वपूर्ण हैं।

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ए.एस.आई की टीम ने विभागीय संग्रहालय के पुरावशेषों का डॉक्युमेंटेशन करने और उन्हें आधुनिक तरीके से प्रदर्शित करने में मदद करने की बात कही है। डॉ. आलम ने डॉ. गौतमी भट्टाचार्य और ए.एस.आई पटना सर्किल की टीम का सहयोग के लिए हार्दिक आभार व्यक्त किया।

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By Editor


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