जमीयत-ए-उलेमाए हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने लोगों से बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि मुद्दे पर अदालत के फैसले को स्वीकार करने और देश में शांति बनाए रखने की एक बार फिर अपील की है। लेकिन यह भी कहा है कि यह मामला एक नासूर का रूप धारण कर गया है, जिसका समाधान किया जाना देश की अखंडता और एकता के लिए आवश्यक है।
श्री मदनी ने नई दिल्ली में कहा कि बाबरी मस्जिद का मुद्दा स्वतंत्रता के पहले और आजादी के बाद भी एक गंभीर समस्या बना हुआ है और जमीयत-ए-उलेमाए हिन्द ने इसे सड़कों का मुद्दा बनाने के बजाय कानूनी तरीके से हल करने की कोशिश की। यह लड़ाई हालांकि काफ़ी लंबी हो गयी और यह मामला उच्चतम न्यायालय में आया तो हमने अपने सबूत पेश किये। अब अदालत का जो भी फैसला आएगा, हमें स्वीकार होगा।
उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद का मुकदमा केवल एक भूमि की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह मामला देश में संविधान और कानून की सर्वोच्चता का मामला है और प्रत्येक न्याय प्रिय व्यक्ति चाहता है कि सबूत और कानून के अनुसार इस मामले का फैसला हो न कि आस्था के आधार पर हो। उन्होंने कहा कि अदालत कह चुकी है कि यह मुकदमा केवल स्वामित्व है।
मौलाना मदनी ने मुस्लिम संगठनों सहित सभी हिन्दू संगठनों और भारतीयों से अपील की कि वह इस फैसले को दिल से स्वीकार करें और देश में शांति बनाए रखें। उन्होंने कहा कि देश में शांति और व्यवस्था कायम रही तो तरक्की होगी और अगर शांति भंग होगी तो देश बर्बाद होगा। उन्होंने कहा कि मुस्लिम दल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और सरकार इस रुख पर कायम हैं कि फैसला जो भी आये हम शांति बनाए रखेंगे।
उन्होंने कहा कि मस्जिद के बारे में हमारा रुख है कि बाबरी मस्जिद एक मस्जिद थी, कयामत तक मस्जिद रहेगी, किसी व्यक्ति या पार्टी को अधिकार नहीं है कि कोई वैकल्पिक उम्मीद मस्जिद से वापस हो। उन्होंने कहा कि मुसलमानों का सिद्धांत पूरी तरह तथ्यों और सबूतों पर आधारित है कि मस्जिद किसी मंदिर को ध्वस्त करके नहीं बनायी गयी।