बांग्लादेश, लंका..142 देशों से नीचे भारत, सरकारी बेफिर्की बड़ी चिंता
अप्रैल-मई में 2.2 करोड़ लोगों का रोजगार खत्म हो गया। जीडीपी माइनस 7 है। अर्थशास्त्री परेशान हैं। उन्हें आनेवाली भीषण तबाही दिख रही है। कैसे बचेगी रोजी-रोटी?
कुमार अनिल
सोशल मीडिया और वाट्सएप यूनिवर्सिटी की अलग ही दुनिया है। जब से जीडीपी माइनस 7 प्रतिशत और करोड़ों लोगों के रोजगार खत्म होने की खबर आई है, वाट्सएप ग्रुपों में धार्मिक घृणा, नफरत फैलानेवाले मेसेज की संख्या बढ़ गई है। मोदी सरकार कभी ट्विटर से लड़ने में व्यस्त है, कभी ममता से। कभी नया नैरेटिव गढ़ने में बिजी है, कभी छवि बचाने में। रोजी-रोटी पर बात ही नहीं हो रही है।
देश के अर्थशास्त्री परेशान हैं। उन्हें आनेवाली भीषण तबाही दिख रही है, लेकिन मोदी सरकार का चिंतित न होना सबसे बड़ी चिंता बन गया है। सीएमआईई के प्रमुख महेश व्यास ने कहा, अप्रैल और मई में दो करोड़ 20 लाख लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। वहीं महंगाई पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।
कहा जा रहा है कि दूसरा वेव अचानक आया, पूरी दुनिया की इकानॉमी खराब है, इसलिए सिर्फ मोदी सरकार को दोष नहीं दे सकते। जबकि सच्चाई यह है कि दुनिया के कई देशों में भारत से पहले दूसरी लहर आई। भारत में भी दूसरी लहर आएगी, इसकी जानकारी विशेषज्ञों ने दी थी। राहुल गांधी ने पिछले साल ही चेताया था कि आर्थिक सुनामी आ सकती है। उन्होंने इससे बचने के उपाय भी बताए थे।
कांग्रेस प्रवक्ता और अर्थशास्त्री गौरव वल्लभ ने पिछले एक वर्ष में देश के लोगों के आमदनी की बानगी पेश करते हुए बताया कि 55% लोगों की आय में कमी आयी है। 42% लोगों की आय स्थिर रही है, जबकि सिर्फ 3% लोगों की आय में वृद्धि हुई है।
उन्होंने कहा, 2020-21 में जीडीपी ग्रोथ रेट -7.3% रही। ऐसा 73 साल में पहली बार हुआ है। सरल भाषा में हमारी अर्थव्यवस्था 2018 के स्तर पर आ चुकी है। सवाल यह उठता है कि कोरोना के बावजूद एशिया के दूसरी अर्थव्यवस्थाएं हमसे बेहतर क्यों कर रही है? उन्होंने कहा कि नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ी चोट दी। फिर जीएसटी का जाल। कोरोना के दौरान बिना तैयारी पिछले साल लॉकडाउन करना घातक साबित हुआ।
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नौकरशाही डॉट कॉम को सारण के गणेश पट्टी गांव के असगीर साईं मिले। उनके पास खेती की जमीन नहीं है। पहले वे फेरी लगाकर रद्दी खरीदते-बेचते थे। अब रद्दी भी नहीं मिल रही। घर में पशु के लिए मोटा अनाज था, जिसे वे बेचने कटसा बाजार में आए थे। बताया, बेचकर अपनी दवा खरीदेंगे। जो भी जमा-पूंजी थी, सब पहले ही खत्म हो गया है। यही हाल बिहार की आधी से अधिक आबादी की है।
जिनकी नौकरी चली गई, रोजगार खत्म हो गया, वेतन कम हो गया, उनका जीवन आनेवाले महीनों में कैसा होगा? अर्थव्यवस्था में सुधार के क्या उपाय हो सकते हैं?
अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि जिस तरह अमेरिका ने अपने यहां नौकरी खोनेवालों को कैश दिया, बेरोजगारी भत्ता बढ़ाया, उसी तरह मोदी सरकार को भी लोगों के हाथ में कैश देना होगा। यह सुझाव बहुत पहले राहुल गांधी ने दिया था। अब कई अर्थशास्त्री भी यही कह रहे हैं।
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आर्थिक तबाही से बचने के लिए गौरव वल्लभ कहते हैं कि सबसे ज्यादा जोर टीकाकरण पर देना होगा। इसके साथ जबतक लोगों के हाथ में पैसा नहीं होगा अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आ सकती। इसलिए गरीबों के हाथ में कैश देना होगा। जिनकी नौकरी गई, उन्हें कैश देना होगा।