2020 चुनाव तीजे:मुसलमानों की भविष्य की क्या होगी रणनीति
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बिहार चुनाव परिणाम ने मुसलमानों के एख सेक्शन में चिंता तो दूसरे वर्ग में गर्वबोध को जन्म दिया है. पहली बार किसी मुस्लिम को काबीना में जगह नहीं मिली तो पहली बार यह भी हुआ कि एक मुस्लिम सियासी पार्टी ने अपनी ताकत का एहसास करा कर पांच सीटों पर जीत हासिल की.
आजादी के बाद ये दोनों मामले एकदम कंट्रास्ट हैं. चुनावी इतिहास में पहली बार मुस्लिम मुक्त कैबिनेट का गठन और पहली बार असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व में किसी मुस्लिम पार्टी का विधान सभा में एक मजबूत ताकत का बनना. इन दोनों गंभीर मुद्दों पर बिहार मरकज ( Beehar Markaz) ने एक मंथन कार्यक्रम का आयोजन किया. इस आयोजन में पटना के अलावा, गया, मुजफ्फरपुर, अऱरिया, कटिहार, मोतिहारी, सीतामढ़ी समेत अनेक जिलों के नुमाइंदों ने शिरकत की.
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बिहार मरकज का गठन कांग्रेस के कदवां विधायक शकील अहमद खान के नेतृत्व में कुछ साल पहले किया गया था. इस संगठन की पहल पर आयोजित इस बैठक में शिक्षा, स्वास्थ्य, सोशल वर्क, राजनीति, कानून औऱ पत्रकारिता से जुड़े बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया. बिहार मरकज ने इस बैठक के लिए 15 एजेंडे तय किये थे. इनमें 2020 के चुनाव परिणाम, मौजदूा समय में मुसलमानों के अन्य समाजों से संबंध, किसान आंदोलन, शिक्षा आदि विषयों पर विचार किये गये.
शकील अहमद खान ने विषय को प्रस्तुत किया. तो बिहार के एडिशनल एडवोकेट जनरल खुरशीद आलम ने इस बात पर जोर दिया कि ओवैसी जैसी पार्टियों की जीत के खिलाफ बहुत चिंतित होने की जरूरत नहीं है. हमें सेक्युलरिज्म के ताने बाने पर काम करने की जरूरत है. वहीं डा. आसिफ रजा ने कहा कि हमारी यह कोशिश होनी चाहिए कि हम अन्य समुदायों के साथ मिल कर सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे को प्रमुखता से उठायें. वहीं पत्रकारिता छोड़ राजनीति में आये फजल इमाम मलिक ने इस बात पर जोर दिया कि हमें राज्य भर में सद्भावना भोज जैसे आयोजनों के सहारे विभिन्न समुदायों के बीच एक प्रेसर ग्रूप बनाने की जरूरत है. समय मंथन के सम्पादक सेराज अनवर ने जोर दे कर कहा कि मुस्लिम समाज में सियासी बेदारी लाने की पहल होनी चाहिए. नौकरशाही डॉट कॉम के एडिटर इर्शादुल हक ने कहा कि मौजूदा सियासी हालात में साम्प्रदायिक राजनीति के आगे बढ़ने का जो स्पेस क्रियेट हुआ है, असदुद्दीन औवैसी की राजनीति के उदय का कारण भी वही है. हमें ओवैसी की आलोचना के बजाये यह भी सोचना चाहिए कि आखिर मुसलमानों के एक तबके में ओवैसी की पकड़ मजबूत क्यों हुई है.
शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी फरहत हसन , सौमवेल अहमद ने इस बात पर जोर दिया कि सियासत में मजबूत पकड़ के लिए हमें लीडिरशिप डेवलपमेंट पर काम करना चाहिए. वहीं इंकलाब के सम्पादक ने बिहार चुनाव नतीजों में अत्यंत पिछड़े वर्ग की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सेक्युलर पार्टियों ने 40 प्रतिशत से भी बड़ी इस आबादी के वोट के लिए उचित प्रयास नहीं किया.
मीडिया की भूमिका पर भी लोगों ने अपने विचार रखे. इस बात से लगभग हर नुमाइंदा सहमत था कि मेनस्ट्रीम मीडिया के समानांतर मीडिया के गठन पर ध्यान दिया जाना चाहिए. साथ ही सोशल मीडिया पर प्रखरता से बात रखी जानी चाहिए. सहाफी अनवारुल होदा और राबिता कमेटी के अफजल खान ने इस बात पर जोर दिया कि सेक्युलरिज्म की सियासत करना सिर्फ मुसलमानों की जिम्मादारी नहीं है. हमने सेक्युलर लीडरों के साथ मिल कर काम करने की जरूत है.
इस आयोजन के लिए अधिकतर लोगों ने कांग्रेस विधायक शकील खान की तारीफ की. शकील खान ने बिहार मरकज ( BEEHAR MaRKAZ) का विस्तार राज्य के अन्य जिलों तक करने की अपने प्रयासों का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि बिहार मरकज का क्षेत्रीय कार्यालय बहुत जल्द गया में शुरू किया जायेगा.