बंगाल में दलितों को जोड़ पाने में विफल रहा लेफ्ट : अखिलेंद्र
स्वराज अभियान के राष्ट्रीय नेता अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि बंगाल में दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों की आकांक्षा को समझने और स्वर देने में लेफ्ट विफल रहा।
बंगाल में दो ही लोगों की चर्चा है। एक ममता बनर्जी और दूसरे नरेंद्र मोदी। टीएमसी बनाम बीजेपी। लेकिन वहां लेफ्ट की क्या स्थिति है?
स्वराज अभियान के वरिष्ठ नेता अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि सैद्धांतिक तौर पर बंगाल में त्रिकोणीय मुकाबला है, पर राजनीतिक रूप से दो दलों टीएमसी और भाजपा में ही मुख्य संघर्ष है। उन्होंने कहा कि लेफ्ट के भीतर आज की बदलती स्थिति को लेकर थेरिटिकल डेफिसिट (सैद्धांतिक कमी-कमजोरी) है। उसने चुनाव लड़ने के लिए कार्यनीति तो सही अपनाई, पर वह सैद्धांतिक तौर पर यह सूत्रबद्ध नहीं कर पाई कि बंगाल को लेफ्ट और कांग्रेस की जरूरत क्यों है?
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अखिलेंद्र प्रताप ने कहा कि बंगाल में लेफ्ट पहले की तुलना में कुछ मजबूत हुआ है और उसे छह से दस प्रतिशत तक वोट आ सकते हैं। लेकिन बड़ी बाच यह है कि वह राज्य की बदलती स्थिति को आत्मसात करने, उसके अनुसार अपनी पहले से तैयारी करने में विफल रहा है।
बंगाल में अबतक भद्रलोक का ही राजनीति पर कब्जा रहा है। इस बीच दलितों, नमोशूद्र, राजवंशी और मटुआ समुदाय की दावेदारी बढ़ी। इसे भाजपा ने अच्छी तरह समझा और उसने इन्हें अपने पाले में लाने के लिए तैयारी भी की, लेकिन यही काम लेफ्ट करने में सफल नहीं रहा।
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उन्होंने कहा कि जो लोग यह समझ रहे थे कि भाजपा को रोकने के लिए लेफ्ट को ममता के साथ रहना चाहिए, वे सही नहीं थे। ममता के साथ जाने से भाजपा और भी ध्रुवीकरण करती। वहां सीपीएम ने ममता सरकार के खिलाफ बनी नाराजगी को समेटने और भाजपा के खिलाफ भी खड़े होने की जो लाइन ली, वह सही है।
लेफ्ट को बंगाल और देश में बदलती स्थिति को समझना होगा। उसे अपने संगठन में अधिक से अधिक दलितों, पिछड़ों, महिलाओं, आदिवासियों को स्थान देना होगा।
अखिलेंद्र प्रताप ने कहा कि वैश्विक पूंजी का हमला बढ़ रहा है और इसके शिकार सबसे ज्यादा दलित, पिछड़े, महिला, आदिवासी जैसे समूह होंगे। इन्हें एक स्वतंत्र जनतांत्रिक मोर्चे के साथ जोड़ना होगा।