कुमार अनिल
बिहार में भूमि सर्वे का भूत हर किसी को परेशान कर रहा है। कोई ब्लॉक ऑफिस जा रहा है, कोई कर्मचारी से मिल रहा है। कोई जमीन का कागज खोजने में परेशान है। किसी को खतियान नहीं मिल रहा। वहीं सरकार के पास भी जमीन के रेकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। लोग परेशान ही नहीं, तनाव में हैं। हालत यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिरनी के छत्ते में हाथ ही नहीं, सिर भी डाल दिया है। सरकार के पास अपनी तैयारी भी नहीं है। नियमों को लेकर भी हर जगह कनफ्यूजन है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि जुलाई, 2025 तक भूमि सर्वे पूरा करा देना है। स्थिति यह है कि भूमि सर्वे जैसा जटिल काम दस महीने में पूरा करना असंभव माना जा रहा है। तो क्या नीतीश कुमार भूमि सर्वे का अभियान बीच में रोक देंगे।
अगले साल अक्टूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव है, जिसकी तैयारी अगस्त सितंबर से ही शुरू हो जाएगी। इसीलिए सरकार चाहती है कि जुलाई तक सर्वे पूरा हो जाए। लेकिन इस कार्य में इतने झंझट हैं कि अफरा-तफरी मच सकती है। लोग हिंसा तक की आशंका जता रहे हैं। ऐसा हुआ तब इसका ठीकरा नीतीश कुमार के सिर फोड़ा जाएगा, जिससे चुनाव में जदयू-भाजपा को नुकसान हो सकता है। इसलिए भी सवाल उठ रहा है कि क्या भूमि सर्वे बीच में ही रोक दिया जाएगा।
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भूमि सर्वे का कार्य अभी ठीक से शुरू भी नहीं हुआ है, लेकिन यह लोगों के सिर का दर्द बन गया है। किसी के पास जमीन तो है, पर कागज नहीं है। कागज है, तो परदादा के नाम पर है। फिर वंशावली कैसे बनेगी। वंशावली बनेगी, तो उसमें बेटियों का भी नाम होगा। परिवार में जमीन बंटवारा भाइयों में हुआ है, तो बेटियों के हिस्से का क्या होगा। क्या बेटियों से अनापत्ति लिखवाना होगा। जमीन एक भाई के हिस्से में है, रशीद चचेरे भाई के दादा के नाम से कट रहा है। जितनी जमीन कागज पर है, वास्तव में जमीन उससे कम या ज्यादा है। इसका फैसला कौन करेगा कि कागज पर जितनी जमीन है, वह सही है या जितनी वास्तव में जमीन है, उसे सही माना जाएगा।
सर्वे में सवाल ही सवाल हैं और उत्तर देनावाला कोई नहीं। हालांकि सरकार ने नियमों में कुछ संशोधन किए हैं, लेकिन वह नाकाफी है।