बिहार में दो विधानसभा और एक लोक सभा उपचुनाव का परिणाम राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। बिहार की भावी राजनीति की दिशा इस परिणाम के द्वारा झलक सकती है.
संजय वर्मा
जिन सटों पर उपचुनाव हो रहे हैं उनमें अररिया से राजद सांसद तस्लीमुद्दीन ,जहानाबाद से राजद प्रधान महासचिव मुंद्रिका सिंह यादव और भभुआ से भाजपा विधायक भूषण पांडेय के दिवंगत होने के कारण रिक्त हुई थीं. तब राजद जदयू कांग्रेस महागठवन्धन और भाजपा लोजपा रालोसपा हम एनडीए के मुकाबला था. अबकी परिस्थिति थोड़ा भिन्न है महागठबंधन से जदयू हट के भाजपा गठबंधन से जा सटा है. राजद नेता तेजश्वी यादव कह रहे कि लालू के जेल जाने से उनकी पार्टी पहले से और मजबूत ही हुई है जबकि महागठबंधन छोड़ भाजपा के साथ सरकार चला रहे नीतीश कुमार की विश्वसनियता की अग्निपरीक्षा होनी है.
वैसे दोनो ओर से सभी सीट पर जीत के दावे बढ़ चढ़के किया जा रहा पर इससे इतर अररिया में राजद ने जदयू विधायक तस्लीमुद्दीन के सुपुत्र सरफराज आलम को तोड़कर उम्मीदवार बना संभावित जीत को पक्का करने की पूरी कोशिश की है.
भाजपा ने प्रदीप कुमार सिंह को उतारा है जहानाबाद सीट पर राजद ने दिवंगत मुंद्रिका यादव के पुत्र सुदय यादव को उतार सहानुभूति रथ पर सवार होने की कोशिश की है. दूसरी ओर हाई वोल्टेज ड्रामे और सहयोगी दलों के आपसी खींचतान के बाद पहले ना कह चुके एनडीए के घटक जदयू ने अपने पूर्व विधायक अभिराम शर्मा को चुनाव मैदान में उतार दिा है.
भभुआ में भाजपा ने अपने दिबंगत विधायक की पत्नी रिंकि रानी पांडेय को सहानभूति के आसरे उतारा है वहीं कांग्रेस ने शम्भूु पटेल को उम्मीदवार बनाया है.
वैसे तीनो सीट का परिणाम सहानुभूति लहर से प्रभावित हुए बिना नही रहेगा परिणाम इसके विपरीत किसी को फायदा किसी को नुकसान हुआ तो लोकसभा 2019 और विधान सभा 2021 को गहराई से प्रभावित करेगा यह चुनाव यह भी तय करेगा कि राजद द्वारा नीतीश कुमार को पलटू राम कहना जायज है या महागठबंधन छोड़ एनडीए के साथ जाने का उनका निर्णय सही था.